Michael Rubin: भारत और पाकिस्तान के बीच तीन दिन तक चले संघर्ष के बाद अब सीजफायर हो चुका है. दरअसल पहलगाम हमले के बाद भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई में ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के 9 आतंकवादी ठिकानों को तबाह कर दिया. साथ ही उसके एयरबेस और रडार सिस्टमों को भी निशाना बनाया गया, जिसके बाद पाकिस्तान घुटने के बल आ गया और सीजफायर की मिन्नते करने लगा.
इस दौरान भारत ने भी इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, लेकिन जब तक भारत इस बात की आधिकारिक पुष्टि करता उससे पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर की घोषणा कर दी और कहा कि अमेरिकी की मध्यस्थता के बाद यह सीजफायर हुआ. लेकिन भारत ने ट्रंप के इस दावे को पूरी तरह से खारिज कर दिया है.
अपने नागरिकों की रक्षा करना सभी देशों का अधिकार
इसी बीच पेंटागन के पूर्व अधिकारी और अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ फेलो माइकल रुबिन ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर कहा कि “भारत यह संघर्ष नहीं चाहता था. यह ऐसा संघर्ष था जो भारत पर थोपा गया था. ऐसे में हर देश को अपने नागरिकों की रक्षा करने का अधिकार है. यह इस बात में कोई अंतर नहीं करता कि देश पर औपचारिक सेना हमला करती है या आतंकवादी सेना हमला करती है. लेकिन अंततः, यह भारत का काम है कि वह एक सीमा रेखा खींचे और कहे कि नहीं, हम अपनी सीमा पर आतंकवादी हमलों को कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे, इसलिए भारत ने वही किया जो जरूरी था.”
भारतीयों को अमेरिकियो की तरह होना चाहिए
इसके अलावा, उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को लेकर कहा कि ‘डोनाल्ड ट्रपं हर चीज का श्रेय लेना पसंद करते हैं. यदि आप डोनाल्ड ट्रम्प से पूछें, तो वे अकेले ही विश्व कप जीत गए. उन्होंने इंटरनेट का आविष्कार किया, कैंसर का इलाज किया. ऐसे में इस मामले में भारतीयों को अमेरिकियो की तरह होना चाहिए और डोनाल्ड ट्रंप को शाब्दिक रूप से नहीं लेना चाहिए.’
पर्दे के पीछे से मध्यस्थता करने की कोशिश करता है अमेरिका
भारत-पाकिस्तान समझ पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयानों को लेकर किए गए सवाल पर माइकल रुबिन ने कहा कि जब भी पाकिस्तान और भारत के बीच टकराव होता है, तो अमेरिका पर्दे के पीछे से मध्यस्थता करने की कोशिश करता है, और यह उचित भी है क्योंकि अमेरिका कूटनीतिक रूप से अप्रतिबंधित युद्ध को रोकने के लिए एक रास्ता प्रदान करने की कोशिश कर रहा है और सबसे खराब स्थिति में, किसी भी तरह के परमाणु आदान-प्रदान को बढ़ने से भी रोक रहा है. ऐसे में अमेरिका नई दिल्ली और इस्लामाबाद दोनों के संपर्क में रहेगा, और दोनों संदेश भेजने के लिए वाशिंगटन का उपयोग करेंगे, यह भी स्पष्ट है.”