Brics Summit 2025: इस समय में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स समिट में शामिल होने के लिए ब्राजील पहुंचे है. इस दौरान समिट में उन्होंने प्रमुख वैश्विक निकायों में सुधार पर जोर देते हुए कहा कि ‘ग्लोबल साउथ’ अक्सर ‘‘दोहरे मानदंडों’’ का शिकार हुआ है और विश्व अर्थव्यवस्था में प्रमुख योगदान देने वाले राष्ट्रों को निर्णय लेने वाले मंच पर जगह नहीं मिल पाती है.
ब्राजील में वैश्विक शासन में सुधार पर आयोजित सत्र को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व व्यापार संगठन और प्रमुख वित्तीय निकायों में सुधार पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि इनमें विश्व की वर्तमान वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित किया जाना चाहिए.
वैश्विक संस्थाओं का बिना सुधार के चलना अस्वीकार्य
वहीं, एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) के युग में, जहां प्रौद्योगिकी हर सप्ताह विकसित होती है. वैश्विक संस्थाओं का 80 साल तक बिना सुधार के चलना अस्वीकार्य है. उन्होंने कहा कि आप 20वीं सदी के टाइपराइटरों पर 21वीं सदी का सॉफ्टवेयर नहीं चला सकते. ‘ग्लोबल साउथ’ के बिना ये संस्थाएं ऐसे मोबाइल फोन की तरह लगती हैं, जिनके अंदर ‘सिम कार्ड’ तो लगा हुआ है, लेकिन नेटवर्क नहीं है.
दुनिया के सामने आने वाली चुनौतियों पर हुई बात
इस दो दिवसीय समिट के पहले दिन ब्रिक्स के शीर्ष नेताओं ने विश्व के समक्ष उपस्थित विभिन्न चुनौतियों पर विचार-विमर्श किया. वहीं, इस सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनके रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन ने भाग नहीं लिया. इसके अलावा, ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन और मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल-फतह अल-सिसी भी इस सम्मेलन का हिस्सा नहीं बनें.
प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर जताया अफसोस
पहले पूर्ण सत्र के दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में इस बात पर अफसोस जताया कि जलवायु वित्त, सतत विकास और प्रौद्योगिकी तक पहुंच जैसे मुद्दों पर ‘ग्लोबल साउथ’ को अक्सर आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला है. इस दौरान उन्होंने कहा कि ग्लोबल साउथ अक्सर दोहरे मानदंडों का शिकार हुआ है. चाहे वह विकास का मुद्दा हो, संसाधनों के वितरण या सुरक्षा से जुड़े मुद्दों का मामला हो.
विश्वसनीयता और प्रभावशीलता का सवाल
पीएम मोदी ने कहा कि 20वीं सदी में निर्मित वैश्विक संस्थाओं में मानवता के दो-तिहाई हिस्से को अब भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में जिन देशों का बड़ा योगदान है, उन्हें निर्णय लेने वाले मंच पर जगह नहीं दी गई है. यह सिर्फ प्रतिनिधित्व का सवाल नहीं है, बल्कि विश्वसनीयता और प्रभावशीलता का भी सवाल है.’’
पीएम मोदी ने कही ये बड़ी बात
उन्होंने कहा कि वैश्विक संस्थाएं ठीक से काम करने या 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने में असमर्थ हैं. चाहे वह दुनिया भर में चल रहे संघर्ष हों, महामारी हो, आर्थिक संकट हो या साइबर या अंतरिक्ष में उभरती चुनौतियाँ हों, ये संस्थान समाधान पेश करने में विफल रहे हैं. बता दें कि ‘ग्लोबल साउथ’ से तात्पर्य उन देशों से है, जो प्रौद्योगिकी और सामाजिक विकास के मामले में कम विकसित माने जाते हैं. ये देश मुख्यतः दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित हैं. इसमें अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के देश शामिल हैं.
दुनिया को बहुध्रुवीय और समावेशी व्यवस्था की जरूरत
पीएम मोदी ने कहा कि आज दुनिया को एक नयी बहुध्रुवीय और समावेशी व्यवस्था की जरूरत है और इसकी शुरुआत वैश्विक संस्थाओं में व्यापक सुधारों से होनी चाहिए. सुधार केवल प्रतीकात्मक नहीं होने चाहिए, बल्कि उनका वास्तविक प्रभाव भी दिखना चाहिए. शासन व्यवस्था, मताधिकार और नेतृत्व के पदों में बदलाव होना चाहिए.
समयानुसार खुद को बदलने की क्षमता रखता है ब्रिक्स
उन्होंने तर्क दिया कि नीति-निर्माण में ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों की चुनौतियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. ब्रिक्स का विस्तार इस बात का प्रमाण है कि यह एक ऐसा संगठन है जो समय के अनुसार खुद को बदलने की क्षमता रखता है. अब हमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और बहुपक्षीय विकास बैंकों जैसी संस्थाओं में सुधार के लिए भी यही इच्छाशक्ति दिखानी होगी.
सभी विषयों पर रचनात्मक योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध
प्रधानमंत्री ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के युग में, जहां हर सप्ताह तकनीक का उन्नयन होता है, किसी वैश्विक संस्था का 80 वर्षों में एक बार भी अपडेट न होना स्वीकार्य नहीं है. भारत ने हमेशा अपने हितों से ऊपर उठकर मानव जाति के हित में काम करना अपना कर्तव्य माना है. हम ब्रिक्स देशों के साथ मिलकर सभी विषयों पर रचनात्मक योगदान देने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं.
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