Education : भारत का पारंपरिक चिकित्सा आयुर्वेद विदेशों में अपनी अलग पहचान के लिए जानी जाती है. लेकिन विश्व में यह पहली बार हो रहा है कि कोई भारतीय विश्वविद्यालय सीधे ब्रिटेन और जर्मनी के कॉलेजों के छात्रों को उनके ही कैंपस में आयुर्वेद पढ़ाएगा. चलिए जानते हैं कि किस यूनिवर्सिटी की तरफ से ये पहल की गई है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार यह पहल सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर की ओर से की गई है. बता दें कि यूनिवर्सिटी की तरफ से इसके लिए ब्रिटेन की एसोसिएशन ऑफ आयुर्वेद एकेडमी, कम्युनिटी इंटरेस्ट कंपनी (CIC) और जर्मनी की इंडो-जर्मन यंग लीडर्स फोरम फॉर ए रिस्पॉन्सिबल फ्यूचर ईवी के साथ साइन किया है. ऐसे में इस समझौते से विदेशों में बैठे छात्र ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यम से आयुर्वेद की पढ़ाई कर सकेंगे.
कुछ विशेष आयुष सिलेबस भी कर सकेगें तैयार
जानकारी देते हुए बता दें कि ब्रिटेन और जर्मनी के छात्रों को बीएएमएस का कोर्स कराया जाएगा. इस योजना के मुताबिक, छात्र साढ़े तीन साल तक अपने देश से ही ऑनलाइन क्लास लेंगे और इसके बाद उन्हें डेढ़ साल के लिए जोधपुर आना पड़ेगा. इस दौरान यहां उन्हें जोधपुर के कॉलेज में प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी जाएगी. इतना ही बल्कि एनसीआईएसएम की गाइडलाइन के आधार पर कुछ विशेष आयुष सिलेबस भी तैयार किए जा रहे हैं, जिन्हें विशेष रूप से विदेशी छात्रों के लिए उपलब्ध कराया जाएगा. ताकि यहां आकर उन्हें अधिक से अधिक जानकारी मिल सके.
ऑनलाइन-ऑफलाइन दोनों माध्यम से मिलेगी शिक्षा
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, छात्रों के पढ़ाई के लिए इस योजना की खास प्लानिंग की गई है. इसके साथ ही जोधपुर के कॉलेज के छात्रों के टाइमटेबल के अनुसार ही उनका भी टाइमटेबल बनाया जाएगा ताकि किसी भी बच्चे के नियमित क्लास पर कोई असर न पड़े. बता दें कि प्रोफेसर अपने कैंपस से ऑनलाइन पढ़ाएंगे और जरूरत पड़ने पर ब्रिटेन और जर्मनी जाकर भी पढ़ाएंगे.
आयुर्वेद शिक्षा को आधुनिक विज्ञान से जोड़ने का प्रयास
इस दौरान इस आयुर्वेद शिक्षा को आधुनिक विज्ञान से जोड़ने पर भी फोकस किया जा रहा है. विश्वविद्यालय ने और भी कई केंद्रीय आयुर्वेदिक अनुसंधान परिषद के साथ मिलकर इसकी शुरूआत की है जैसे- नई दिल्ली, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ नेचुरोपैथी, पुणे और केंद्रीय होम्योपैथी परिषद, जयपुर के साथ मिलकर पीएचडी कोर्स शुरू किया है.
नई औषधियां की पद्धतियां की जाएगी विकसित
मुख्य रूप से इसका मकसद है कि आयुर्वेद के प्राचीन ज्ञान को नई तकनीकों जैसे जीनोमिक्स और बायोटेक्नोलॉजी के साथ जोड़ना. इन्हीं के जरिए नई औषधियां की पद्धतियां विकसित की जाएंगी. इस मामले को लेकर यूनिवर्सिटी का कहना है कि अगर परंपरागत आयुर्वेदिक ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ा जाए तो यह और भी प्रभावी हो सकता है.
अपने ही देश से पढ़ाई कर सकेगें विदेशी छात्र
अगर पहले की बात करें तो विदेशी छात्रों को आयुर्वेद की पढ़ाई के लिए पूरे साढ़े 5 साल भारत में ही रहना पड़ता था. लेकिन इस नई शुरूआत से उन्हें सिर्फ ट्रेनिंग के लिए भारत आना होगा और बाकी पढ़ाई वे अपने ही देश में कर पाएंगे.
आयुष ज्ञान का वैश्विक प्रसार
मीडिया ने जानकारी देते हुए बताया कि ब्रिटेन सरकार से इस कोर्स के लिए परमिशन लेटर मिल गया है, और जर्मनी में प्रक्रिया जारी कर दी गई है. इसके साथ ही भारत सरकार के आयुष मंत्रालय से भी अनुमति मिलने के बाद यह कार्यक्रम आधिकारिक रूप से शुरू किया जाएगा. ऐसे में इस शिक्षा को लेकर आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. पीके प्रजापति का कहना है कि ये पहल आयुर्वेद के लिए एक नया अध्याय है. अब आयुष ज्ञान का वैश्विक प्रसार हो सकेगा.
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