India-EU FTA : अंतरराष्ट्रीय राजनीति की दिशा अक्सर आर्थिक समीकरणों से तय होती है. कुछ दिनों पहले ही ट्रंप द्वारा उठाए गए टैरिफ विवाद ने यूरोपीय संघ (EU) को झटका दिया है. क्योंकि ट्रंप के फैसले से अमेरिकी बाजारों पर निर्भरता और अप्रत्याशित नीतियों ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि उन्हें अपने वैश्विक साझेदारों का दायरा बढ़ाना होगा.
प्राप्त जानकारी के अनुसार इसी कड़ी में भारत एक स्वाभाविक विकल्प बनकर उभर रहा है. बता दें कि यह एक बहुत बड़ा संकेत है कि यूरोप, भारत से दुश्मनी करने का जोखिम उठाने को तैयार नहीं है. इस बात से यह स्पष्ट होता है कि भारत न केवल एक विशाल उपभोक्ता बाज़ार है, बल्कि राजनीतिक संतुलन में उसकी भूमिका अहम हो चुकी है.
सिबिहा ने भारत से किया आग्रह
इसके साथ ही दूसरी तरफ युद्ध को लेकर यूक्रेन के विदेश मंत्री एंड्री सिबिहा ने इस मामले को लेकर भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से टेलीफोन पर बातचीत करते हुए युद्धक्षेत्र की स्थिति की जानकारी साझा करते हुए भारत से आग्रह किया कि यूक्रेन एक “न्यायसंगत शांति” की दिशा में काम कर रहा है और इस लक्ष्य को हासिल करने में भारत की भागीदारी अहम होगी.
दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय वार्ता
जानकारी देते हुए बता दें कि हाल ही में पीएम मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से चीन में मुलाकात की थी. इसके साथ ही उस बैठक के दौरान दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय वार्ता के अलावा निजी स्तर पर भी लंबी बातचीत हुई थी. प्राप्त जानकारी के अनुसार इस बैठक के पहले पीएम मोदी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से भी बात की थी और शांति बहाली के बारे में बातचीत की थी. वहीं दूसरी ओर यूरोप और यूक्रेन को आश्वस्त कर रहा है कि वह युद्ध को समाप्त करने के लिए रचनात्मक योगदान देगा.
‘यह युग युद्ध का नहीं‘– पीएम मोदी
लेकिन यहां मुद्दा इस बात का है कि रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म करवाने में भारत की भूमिका क्यों अहम है? ता दें कि इसका मुख्य कारण यह है कि भारत की स्थिति कई कारणों से अनूठी है. क्योंकि भारत एक ऐसा देश है जो भारत रूस और पश्चिम— दोनों से संवाद बनाए रखने वाले कुछेक देशों में से है. जानकारी देते हुए बता दें कि पीएम मोदी का “यह युग युद्ध का नहीं है” वाली घोषणा पहले ही वैश्विक राजनीति में एक नैतिक संदर्भ बन चुकी है.
दोनों देश भारत की भूमिका को मान रहे निर्णायक
फिलहाल के लिए हालात को देखते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध की दिशा अनिश्चित बनी हुई है. लेकिन यह स्पष्ट है कि यूरोप और यूक्रेन भारत की भूमिका को निर्णायक मान रहे हैं. ऐसे में उनका कहना है कि अगर भारत अपनी कूटनीतिक ताक़त और संवाद-क्षमता का उपयोग कर सके, तो न केवल इस युद्ध के अंत की राह आसान होगी, बल्कि भारत की अंतरराष्ट्रीय साख भी नई ऊँचाइयों तक पहुँचेगी.
भारत की ओर झुकाव कूटनीति का शिष्टाचार
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यूरोपीय संघ का भारत की ओर झुकाव कूटनीति का शिष्टाचार नहीं है, बल्कि दोनों देशों के लिए एक रणनीतिक आवश्यकता है. इस दौरान जब व्हाइट हाउस की राह में ठोस नतीजे नहीं मिले, तब यूरोप ने एक नई उम्मीद जताते हुए नई दिल्ली का रुख किया है. ऐसे में अब सवाल यह है कि क्या भारत इस स्थिति का लाभ उठाकर स्वयं को वैश्विक शांति के निर्णायक सूत्रधार के रूप में स्थापित कर पाएगा?
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