India Japan relations: दशकों पुरानी सीमाओं और पारंपरिक रक्षा साझेदारियों को पीछे छोड़ते हुए भारत और जापान एक ‘अभूतपूर्व उच्च-प्रौद्योगिकी रक्षा सहयोग’ की ओर बढ़ रहे हैं. दोनों देशों ने अत्याधुनिक रक्षा प्रणालियों के विकास, उत्पादन और तैनाती की दिशा आगे बढ़ रहे है. इसकी जानकारी टोक्यो स्थित जापान फॉरवर्ड एसोसिएशन ने इस सप्ताह अपनी विस्तृत रिपोर्ट में दी है.
दरअसल, टाकुशोकू विश्वविद्यालय के इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजिक स्टडीज सेंटर में विजिटिंग प्रोफेसर पेमा ग्यालपो ने रिपोर्ट ‘जापान, इंडिया सिक्योरिटी कोऑपरेशन राइजेस अक्रॉस द बोर्ड’ में लिखा कि “इंडो-पैसिफिक क्षेत्र एक निर्णायक मोड़ पर है, जहां तकनीकी श्रेष्ठता रणनीतिक परिणाम तय कर रही है.
रक्षा में एक नया अध्याय दोनों देशों के बीच का यह सहयोग
ऐसे में दोनों देशों का यह सहयोग पारंपरिक हथियार व्यापार से कहीं आगे जाकर संयुक्त रूप से अत्याधुनिक रक्षा प्रणालियों के विकास, उत्पादन और तैनाती की दिशा में नया अध्याय खोल रहा है.” भारत और जापान की दोस्ती को साल 2014 में स्पेशल स्ट्रैटेजिक एंड ग्लोबल पार्टनरशिप के स्तर पर ले जाया गया, जिसके बाद रक्षा आदान-प्रदान और भी मजबूत हुए. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को लेकर साझा दृष्टिकोण ने इस सहयोग को और गति दी है.
दोनों देशों ने पिछले साल ही एमओआई पर किए थे साइन
रिपोर्ट के मुताबिक, 15 नवंबर 2024 को टोक्यो स्थित भारतीय दूतावास में भारत और जापान के बीच यूनिफाइड कॉम्प्लेक्स रेडियो एंटेना मस्त के सह-विकास के लिए मेमोरेंडम ऑफ इम्प्लीमेंटेशन (एमओआई) पर हस्ताक्षर किए गए. यह एंटेना नौसैनिक जहाजों पर लगाया जाएगा और इसके एकीकृत संचार तंत्र से प्लेटफॉर्म की स्टील्थ क्षमता में वृद्धि होगी. इसके साथ ही ये जापानी सहयोग से भारत में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड को विकसित करेगा.
भारत-जापान के बीच रक्षा उपकरण के सह-विकास का पहला मामला
बता दें कि यह भारत और जापान के बीच रक्षा उपकरण के सह-विकास का पहला मामला होगा. रिपोर्ट के मुताबिक, जापान अपने अत्याधुनिक मोगामी-क्लास फ्रिगेट्स पर लगी इस स्टील्थ तकनीक को साझा करने का फैसला कर, भारत को एशिया का केवल दूसरा देश (फिलीपींस के बाद) बना रहा है जिसे इतनी उच्चस्तरीय रक्षा तकनीक मिलेगी.
पनडुब्बी तकनीक तक विस्तारित हो सकता है यह सहयोग
यह निर्णय भारत और जापान के बीच गहरे रणनीतिक भरोसे का प्रतीक है. वहीं, रडार प्रणालियों से आगे बढ़कर यह सहयोग पनडुब्बी तकनीक तक विस्तारित हो सकता है. बता दें कि जापान की सोर्यू-क्लास पनडुब्बियां, जिनमें लिथियम-आयन बैटरी प्रणोदन प्रणाली है, दुनिया की सर्वश्रेष्ठ पारंपरिक पनडुब्बियों में गिनी जाती हैं. 4,200 टन वजनी ये पनडुब्बियां फ्रांस की स्कॉर्पीन और जर्मनी की टाइप-214 से बेहतर स्टील्थ और सहनशक्ति प्रदान करती हैं.
रणनीतिक गहराई प्रदान करता है भारत
बता दें कि जापान के पास अत्याधुनिक तकनीक और निर्माण में सटीकता है, जबकि भारत विशाल बाजार, बढ़ती तकनीकी क्षमता और हिंद महासागर क्षेत्र में रणनीतिक गहराई प्रदान करता है. ऐसे में ग्यालपो का मानना है, “यूनिकॉर्न मस्त समझौता महज शुरुआत है, लेकिन यह आने वाले दशकों में क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरण को बदलने वाली प्रक्रिया की नींव रखता है.”
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