India-Russia Partnership: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दो दिवसीय भारत दौरे पर गुरुवार को दिल्ली पहुंचे. पुतिन के इस दौरे का मकसद केवल द्विपक्षीय मुलाकात नहीं, बल्कि भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी के 25 साल पूरे होने के अवसर को चिह्नित करना भी है. ऐसे में इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा, ऊर्जा, व्यापार और तकनीकी सहयोग को और मजबूत करने पर चर्चा होने की उम्मीद है.
वहीं, रूसी राष्ट्रपति के भारत पहुंचने पर उनके सम्मान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निजी रात्रिभोज रखा. बता दें कि पुतिन की यह यात्रा उनके पिछले भारत दौरे के लगभग पांच साल बाद हो रही है. इससे पहले 6 दिसंबर 2021 को उनकी पिछली भारत यात्रा हुई थी.
पुतिन के इस यात्रा का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि वैश्विक परिदृश्य में दो प्रमुख धुरियाँ बन रही हैं, एक तरफ रूस और उसके सहयोगी, तो दूसरी तरफ अमेरिका और उसके पश्चिमी साझेदार.
भारत-रूस सहयोग मजबूत: चीन का नजरिया
दरअसल, चीनी मीडिया आउटलेट्स और विशेषज्ञों का पुतिन के इस दौरे को लेकर संकेत दिया है कि भारत और रूस के संबंध कई स्तरों पर गहरे और रणनीतिक हैं. ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक, दोनों नेता रक्षा क्षेत्र, ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार विस्तार, नई तकनीकों और नवाचार में सहयोग पर विचार करेंगे.
इसके अलावा, चीन के विदेश मामलों के विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ली हाईडोंग का कहना है कि भारत-रूस के रिश्ते बाहरी दबावों का सामना करने में सक्षम हैं. उनके अनुसार, यह दौरा दुनिया को स्पष्ट संदेश देता है कि न तो भारत और न ही रूस किसी भी पश्चिमी दबाव के आगे झुकेंगे.
वैश्विक परिदृश्य में भारत-रूस यात्रा का महत्व
रूसी और भारतीय सूत्रों की मानें तो इस दौरे में 10 सरकारी समझौते और 15 से अधिक व्यावसायिक अनुबंधों पर हस्ताक्षर होने की संभावना है. यह ऐसे समय पर हो रहा है जब यूरोपीय आयोग रूसी फंड्स और लेनदेन पर नए प्रस्ताव ला रहा है.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस दौरे का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि अमेरिका भारत पर दबाव डाल रहा है कि वह रूसी तेल और ऊर्जा लेनदेन को कम करे. इसके बावजूद भारत ने अपने हितों के आधार पर निर्णय लेने का स्वतंत्र रुख बनाए रखा है.
इन प्रमुख विषयो पर होगी मोदी और पुतिन के बीच बातचीत
- रक्षा क्षेत्र में मौजूदा और नई परियोजनाओं पर सहयोग.
- ऊर्जा सुरक्षा में रणनीतिक साझेदारी.
- व्यापार और आर्थिक सहयोग, जिसमें दोनों देशों की राष्ट्रीय मुद्राओं में लेनदेन बढ़ाने की दिशा में कदम शामिल हैं.
- तकनीकी सहयोग, विशेष रूप से अंतरिक्ष, लॉजिस्टिक्स और नवाचार के क्षेत्र में.
रूस के अनुसार, अब दोनों देशों के लेनदेन का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा राष्ट्रीय मुद्राओं में हो रहा है, जो पश्चिमी प्रतिबंधों का सीधा असर कम करता है.
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