Kyiv/Moscow: रूस-यूक्रेन युद्ध में एक नया मोड़ आ गया है. अब यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने पुतिन के ‘ऊर्जा साम्राज्य’ पर वार किया है, जिससे पूरा रूस जीवित है. रूस की ताकत ही अब उसकी कमजोरी बन चुकी है. रूस का तेल और गैस निर्यात ही उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. युद्ध से पहले बजट का 40% हिस्सा यहीं से आता था. अब भी 30% से ज़्यादा इसी पर निर्भर है. लेकिन यूक्रेनी ड्रोन हमलों ने इस आय को ही निशाने पर ले लिया है. ऐसे में माना जा रहा है कि जो रूस की ताकत थी, वही अब उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन चुकी है.
ड्रोन रूस की करोड़ों डॉलर की रिफाइनरियों को बना रहे हैं पंगु
यूक्रेन की ड्रोन रणनीति को समझना होगा. बता दें कि महंगे फाइटर जेट या मिसाइल नहीं, बल्कि सस्ते और लंबे रेंज वाले ड्रोन रूस की करोड़ों डॉलर की रिफाइनरियों को पंगु बना रहे हैं. यूक्रेन तेल स्टोरेज टैंकों पर नहीं बल्कि प्रोसेसिंग यूनिट्स पर वार कर रहा है. उनकी मरम्मत के लिए ज़रूरी पार्ट्स और तकनीक रूस को पश्चिमी प्रतिबंधों की वजह से नहीं मिल रही. नतीजन एक छोटा ड्रोन महीनों तक पूरे रिफाइनरी को ठप कर देता है.
यह जंग अब सीधी जनता तक पहुंच गई
अब तक रूसियों के लिए यह जंग सिर्फ टीवी पर चल रही थी, लेकिन अब सीधी जनता तक पहुंच गई है. पेट्रोल पंपों पर लंबी लाइनें, ईंधन की कीमतों में उछाल, गैस सप्लाई में बाधा ने आम नागरिकों को जता दिया है कि यह जंग उनके घर तक आ चुकी है. केवल अगस्त-सितंबर 2025 में रूस की सात बड़ी रिफाइनरियों पर हमले हुए. कुल 100 अरब डॉलर से ज्यादा नुकसान हुए. सलावत और अस्त्रखान जैसे प्लांट रूस की स्ट्रैटेजिक एनर्जी चेन में अहम हैं और इन्हें निशाना बनाकर यूक्रेन ने पुतिन के सामने डोमिनो इफेक्ट खड़ा कर दिया है.
रूस को निर्यात घटाना पड़ेगा, उसके युद्ध फंड पर पड़ेगा सीधा असर
रूस को अपनी ऊर्जा आपूर्ति बचाने के लिए नए सुरक्षा ढांचे बनाने होंगे. जिस पर अरबों डॉलर और खर्च होंगे. अगर ये हमले इसी रफ्तार से जारी रहे तो रूस को निर्यात घटाना पड़ेगा. जिसका सीधा असर उसके युद्ध फंड पर पड़ेगा. पुतिन का राजनीतिक भविष्य भी इससे प्रभावित हो सकता है. क्योंकि, जब आम नागरिक रोजमर्रा की ज़िंदगी में संकट झेलेंगे, तब विशेष सैन्य अभियान का समर्थन घटेगा.
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