चीन की ‘पांडा कूटनीति’ के बाद चर्चा में मलेशिया की नीति, ऑयल खरीदने पर मिलेगा ओरांगुटान

Ujjwal Kumar Rai
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Chief Sub Editor The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Malaysia Palm Oil: चीन की ‘पांडा कूटनीति’ के बाद इन दिनों मलेशिया की ओरांगुटान काफी चर्चाओं में है. तेल की खरीद को लेकर मलेशिया ने बड़ा फैसला किया है. मलेशिया का कहना है कि वह उसका पाम तेल खरीदने वाले प्रमुख देशों को बतौर ओरांगुटान देने की योजना बना रहा है. इससे पहले चीन इसी तरह की पांडा कूटनीति करता रहा है.

जानिए क्या है चीन की पांडा कूटनीति

दरअसल, पांडा कूटनीति से तात्पर्य दोस्ती, सद्भावना या राजनयिक संबंधों को मजबूत करने के प्रतीक के रूप में चीनी सरकार द्वारा अन्य देशों को बड़ा पांडा उपहार या उधार देने की प्रथा से है. वहीं, पांडा चीन के जाने माने योग्य प्रतीकों में से एक हैं. इसे ‘सॉफ्ट पावर’ का स्रोत भी माना जाता है.

संरक्षण समूह ने जताई चिंता

बीबीसी की खबर के अनुसार मलेशिया के कमोडिटी मंत्री जौहरी अब्दुल गनी ने जानकारी दी. उन्होंने कहा, “इस योजना का वैसा ही असर होने की उम्मीद है, जैसी चीन ‘पांडा कूटनीति’ से करता है. मलेशिया की ओरांगुटान नीति को लेकर संरक्षण समूह WWF ने अपना पक्ष सामने रखा है. उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आवास में ओरंगुटान की रक्षा पर भी ध्यान होना चाहिए.

आपका बता दें कि ओरांगुटान इंडोनेशिया और मलेशिया का मूल निवासी जीव है. ये अति गंभीर लुप्तप्राय प्रजाति के जीव हैं. लगातार वर्षावन क्षेत्रों के कम होने और कृषि विस्तार से उनके अस्तित्व को लेकर खतरा पैदा कर दिया है. कृषि विस्तार का एक प्रमुख कारण ताड़ के तेल के बागानों के लिए हो रहा है. दरअसल, ओरांगुटान का मतलब ‘जंगल का आदमी’ होता है. WWF की मानें, तो बोर्नियो द्वीप पर लगभग 105,000 और सुमात्रा पर महज कुछ हजार ओरांगुटान बचे हैं.

क्यों लाई गई योजना

दरअसल, इंडोनेशिया के इस प्रस्ताव की वजह बीते साल यूरोपीय संघ द्वारा वनों की कटाई से जुड़ी वस्तुओं पर आयात प्रतिबंध को मंजूरी देने से है. इस प्रतिंबध के कारण इंडोनेशिया के पाम तेल का निर्यात भी प्रभावित हो सकता है. विश्व में पाम तेल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश मलेशिया है. मलेशिया ने इस कानून को भेदभावपूर्ण बताया है. इस ओरांगुटान नीति का मकसद ये है कि मलेशिया अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित करना चाहता है. साथ ही वह लुप्तप्राय प्रजाति को जीवित रखने के लिए भी बहुत गंभीर है.

जानिए कमोडिटी मंत्री जौहरी ने क्या कहा

इस मामले में मलेशिया के कमोडिटी मंत्री जौहरी अब्दुल गनी जौहरी ने जानकारी दी. उन्होंने कहा, “चीन, भारत और यूरोपीय संघ जैसे पाम तेल के प्रमुख आयातक देशों को वानरों को उपहार के रूप में पेश करेगा. इस बाबत उन्होंने एक्स पर लिखा, ‘यह वैश्विक समुदाय को साबित करेगा कि मलेशिया जैव विविधता संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है.’ कमोडिटी मंत्री ने कहा, ‘मलेशिया पाम तेल के मुद्दे पर रक्षात्मक रुख नहीं अपना सकता. इसके बजाय हमें दुनिया के देशों को यह दिखाने की ज़रूरत है कि मलेशिया एक स्थायी पाम तेल उत्पादक है और जंगलों और पर्यावरणीय स्थिरता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.’

संरक्षण समूहों ने जाहिर कि चिंता

वही, मलेशिया की इस नीति को लेकर संरक्षण समूहों ने चिंता जताई है. इस मामले में WWF मलेशिया ने कहा, “ताड़ की तेल संपदा को वन्यजीव गलियारों को अलग रखना चाहिए. ऑरंगुटान योजना मलेशिया में मौजूदा वानरों की आबादी की सुरक्षा और संरक्षण को प्रभावित कर सकती हैं.

इस काम में होता है पाम तेल का इस्तेमाल

इसके अलावा एडवोकेसी ग्रुप जस्टिस फॉर वाइल्डलाइफ मलेशिया ने भी कहा कि सरकार को दूसरे वैकल्पिक राजनयिक उपायों पर विचार करना चाहिए. इस ऑरंगुटान योजना के संभावित प्रभावों पर अधिक शोध करने की जरुरत है. दरअसल, पाम तेल का इस्तेमाल कई तरह के प्रॉडक्ट्स को बनाने में उपयोग किया जाता है. इसमें चॉकलेट, कॉस्मेटिक और साबुन जैसे प्रॉडक्ट्स शामिल हैं.

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