लोकतांत्रिक नहीं, निरंकुशता… शहबाज सरकार ने और भी बढ़ा दी मुनीर की पावर, विपक्षी दलों ने जताई नाराजगी

Aarti Kushwaha
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Pakistan Anti-Terrorism: पाकिस्तान की संसद में हाल ही प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा पेश किया गया एंटी टेररिज्म अमेंडमेंट बिल देश के राजनीतिक माहौल में उथल-पुथल मचा रहा है. इस कानून को लेकर एक ओर जहां विपक्षी दलों में नाराजगी है, वहीं, दूसरी ओर मानवाधिकार सगठनों ने भी इसका कड़ा विरोध किया है. दरअसल, इस बिल के ज़रिए सेना और सुरक्षा एजेंसियों को ऐसी शक्तियां मिल गई हैं, जिन्हें तानाशाही की ओर बढ़ता कदम कहा जा रहा है.

बता दें कि पाकिस्‍तान के संसद में पेश किए गए इस संशोधित कानून के तहत अब सुरक्षा बलों को यह अधिकार मिल गया है कि वे किसी भी व्यक्ति को केवल संदेह या खुफिया रिपोर्ट के आधार पर तीन महीने तक हिरासत में रख सकते हैं, वो भी बिना मुकदमा चलाए. इस गिरफ्तारी का आदेश सरकार, सेना या अर्धसैनिक बल भी दे सकते हैं.

2016 में खत्म कर दिया गया था यह प्रावधान

बिल के मुताबिक, जांच की प्रक्रिया संयुक्त पूछताछ टीम (JIT) के द्वारा की जाएगी, जिसमें पुलिस, खुफिया एजेंसियों और सेना के अधिकारी शामिल होंगे. इसके अलावा, यह प्रावधान तीन वर्षों के लिए लागू रहेगा, और आवश्यकता पड़ने पर संसद इसे आगे बढ़ा सकती है. बता दें कि यह कानून साल 2014 के पुराने एंटी-टेररिज्म एक्ट के उस प्रावधान को फिर से बहाल करता है, जिसे 2016 में खत्म कर दिया गया था.

विपक्ष और कार्यकर्ताओं का विरोध

ऐसे में विपक्षी पार्टी पीटीआई के नेता बैरिस्टर गोहर अली खान ने इस कानून को मानवाधिकारों पर हमला बताते हुए कहा कि सिर्फ शक के आधार पर किसी व्यक्ति को जेल में डालना, और अदालत में पेश किए बिना उसे तीन महीने तक बंद रखना लोकतांत्रिक नहीं, बल्कि निरंकुशता है. मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह कानून आतंकवादियों से निपटने के बजाय, सरकार की नीतियों से असहमति जताने वालों, पत्रकारों और विपक्ष को दबाने का हथियार बन जाएगा.

आजम नजीर ने संसद में पेश की सफाई

वहीं, कानून मंत्री आजम नजीर तारड़ ने संसद में इस कानून का बचाव करते हुए कहा कि यह सिर्फ विशेष परिस्थितियों में इस्तेमाल किया जाएगा. उनके मुताबिक गिरफ्तारी का ठोस आधार होना ज़रूरी है. साथ ही आरोपी को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाएगा. यह एक स्थायी कानून नहीं, बल्कि अस्थायी समाधान है.

परवेज मुशर्रफ के नक्शे कदम पर चल रहे मुनीर

दरअसल, इस बिल के संसद में पास होने से यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर अब परवेज मुशर्रफ के नक्शे कदम पर चल रहे हैं? दरअसल, साल 1999 में जनरल मुशर्रफ ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार को तख्तापलट कर गिराया था और देश में आपातकाल लागू कर फौजी शासन स्थापित किया था.

ऐसे में एक बार फिर पाकिसतान में यही डर फिर से महसूस किया जा रहा है, जहां सेना पहले से ही सियासत में हावी रही है और अब संसद द्वारा दिए गए इस कानूनी कवच ने सेना की ताकत को और मजबूत कर दिया है. 

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