‘अब पाकिस्तानी एयरलाइंस पर भी सेना का कब्जा!’, देश में चल रहा आसिम मुनीर का सिक्का

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Islamabad: पाकिस्तान में CDF आसिम मुनीर ने देश के उड्डयन क्षेत्र में भी दखलअंदाजी शुरू दी है. पाकिस्तानी सेना ने बैकडोर से PIA (पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस) में एंट्री मार दी है. हालांकि, इसका अंदेशा पहले से ही था और गुरुवार को उस पर मुहर भी लगा दी गई. जानकारी के मुताबिक बिडिंग से ठीक दो दिन पहले बतौर बिडर ने खुद को अलग कर लिया था. स्थानीय मीडिया और वर्ल्ड मीडिया में तभी से कयास लगा रहे थे कि नाम वापस लेने का मकसद वो नहीं जो दिख रहा है.

कंसोर्टियम में शामिल होने का ऐलान

जियो न्यूज के अनुसार मामले में सच्चाई तब सामने आई जब आरिफ हबीब कंसोर्टियम ने फौजी फर्टिलाइजर कंपनी लिमिटेड (FFPL) के उसके कंसोर्टियम में शामिल होने का ऐलान कर दिया है. आरिफ हबीब ने पाकिस्तान की सरकारी एयरलाइंस की निजीकरण प्रक्रिया के लिए हुई नीलामी में 135 अरब रुपये की सबसे ऊंची बोली लगाकर पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस में 75 फीसदी हिस्सेदारी हासिल की है.

फौजी फाउंडेशन का एक हिस्सा

FFPL 1978 में बनी पाकिस्तान की एक खाद निर्माता कंपनी है. ये फौजी फाउंडेशन का एक हिस्सा है जो पाकिस्तान सेना से जुड़ा है. कंसोर्टियम ने गुरुवार को जारी अपने बयान में कहा कि यह पार्टनरशिप एयरलाइन को फाइनेंशियल सपोर्ट और कॉर्पोरेट विशेषज्ञता देगी. इसमें यह भी कहा गया है कि फौजी फर्टिलाइजर भी आरिफ हबीब कंसोर्टियम के साथ प्रबंधन का हिस्सा होगी. कंसोर्टियम पहले साल में ग्राउंड ऑपरेशंस और ओवरऑल सर्विसेज को अपग्रेड करने के लिए 125 अरब रुपये का निवेश करेगा.

हबीब कंसोर्टियम का हिस्सा बनने को तैयार

बात उस फौजी फर्टिलाइजर कंपनी लिमिटेड कंपनी की जो हबीब कंसोर्टियम का हिस्सा बनने को तैयार है. बिडिंग प्रक्रिया का हिस्सा कुल चार कंपनियां थीं. इनमें से आखिरी समय पर FFPL ने खुद को अलग कर लिया. इसकी वजहें कई थीं. सबसे बड़ी बात यह है कि आरिफ हबीब कंसोर्टियम ने सरकार की सोच से ज्यादा 4320 करोड़ की बोली लगाई, जबकि सरकार ने 3200 करोड़ रुपए का अनुमान लगाया था. उसे 1320 करोड़ रुपए ज्यादा मिले.

PIA मैनेजमेंट में भी शामिल नहीं हो पाती

इतना निश्चित तौर पर FFPL  नहीं कर सकती थी. दूसरा तय नियमों के अनुसार हारी हुई कंपनी PIA मैनेजमेंट में भी शामिल नहीं हो पाती. अगर ऐसा होता तो हाल ही में CDF बने आसिम मुनीर का उड्डयन क्षेत्र में दखलअंदाजी का सपना टूट जाता. एक और अहम कारण अपनी साख को बचाना था. दरअसल निजीकरण की राह IMF के सहारे ही पकड़ी जा रही है. अब अगर सेना इसमें हिस्सा लेती तो गलत संदेश जाता क्योंकि नीलामी की शर्तों के अनुसार प्राइवेट कंपनी ही हिस्सेदारी खरीद सकती थी.

बाहर होने का खौफ सबसे ज्यादा

बिडिंग में हार और गेम से बाहर होने का खौफ सबसे ज्यादा था. एक बार आउट होने का मतलब किसी भी रूप में वापसी से चूकना था. बस मुनीर ने वापसी का रास्ता अपने कंट्रोल में रखा क्योंकि नीलामी का एक नियम ये भी था कि जीती हुई कंपनी चाहे तो किसी के भी साथ गठबंधन कर सकती है.

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