Sardar Patel : भारत के ‘लौह पुरुष’ सरदार वल्लभभाई पटेल की आज पुण्यतिथि है. एक बार फिर उनकी वह ऐतिहासिक भूमिका याद की जा रही है, जिसने स्वतंत्रता के बाद देश को टुकड़ों में बंटने से बचाया. विशेष रूप से गुजरात की रियासत जूनागढ़ का भारत में विलय, पटेल की कूटनीति और दृढ़ता का उदाहरण है.
हिंदू बहुल इस रियासत को नवाब महाबत खान ने पाकिस्तान में मिलाने का फैसला किया था, लेकिन सरदार पटेल ने इसे न केवल रोका बल्कि जनता की इच्छा से भारत का अभिन्न अंग बना दिया। 1947 में आजादी के समय भारत में 562 रियासतें थीं। अधिकांश ने भारत में विलय स्वीकार कर लिया, लेकिन जूनागढ़ के नवाब महाबत खान ने 15 सितंबर 1947 को पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर दी।
इस वजह से बढ़ा विवाद
बता दें कि जूनागढ़ रियासत की 80 प्रतिशत आबादी हिंदू थी और यह पाकिस्तान से पूरी तरह अलग थी. ऐसे में नवाब के दीवान शाहनवाज भुट्टो ने इस फैसले में बड़ी भूमिका निभाई. प्राप्त जानकारी के अनुसार इस विलय को पाकिस्तान ने 13 सितंबर को ही मंजूरी दे दी, जिससे कारण विवाद और गहरा गया.
कुत्तों के साथ कराची भागे नवाब
प्राप्त जानकारी के अनुसार सरदार पटेल, जो उस समय गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री भी थे. इसे उन्होंने भारत की एकता पर हमला माना. इसके साथ ही आर्थिक नाकेबंदी की और रियासत के आसपास के क्षेत्रों में भारतीय सेना तैनात की. इसी के चलते जूनागढ़ में ‘आरजी हुकूमत’ (अस्थायी सरकार) का गठन हुआ और लोग सड़कों पर उतर आए. बता दें कि 25 अक्टूबर 1947 की रात को नवाब डरकर अपने कुत्तों और परिवार के साथ कराची भाग गए.
भारतीय सेना ने जूनागढ़ पर किया कब्जा
इस दौरान उनके इस हिम्मत और साहसी फैसले के कारण 9 नवंबर 1947 को भारतीय सेना ने जूनागढ़ पर कब्जा कर लिया. इसके साथ ही फरवरी 1948 में जनमत संग्रह हुआ, जिसमें 99.5 प्रतिशत लोगों ने भारत में विलय के पक्ष में वोट दिया और जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गया. हाल ही में सरदार की 150वीं जयंती पर गुजरात में जूनागढ़ से एकता मार्च शुरू हुआ, जो उनकी विरासत को जीवंत रखने का प्रयास है.
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