New Delhi: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को फांसी की सजा दिए जाने के फैसले का जहां कुछ लोग समर्थन कर रहे हैं तो वहीं काफी लोग इसे तानाशाही रवैया बता रहे हैं. इसी बीच संयुक्त राष्ट्र ने भी शेख हसीना को फांसी की सजा दिए जाने के फैसले का कड़ा विरोध किया है. महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र हर हाल में मौत की सजा के खिलाफ है.
संयुक्त राष्ट्र हर हाल में मौत की सजा के खिलाफ
संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने सोमवार को अपनी दैनिक प्रेस ब्रीफिंग में साफ कहा कि संयुक्त राष्ट्र हर हाल में मौत की सजा के खिलाफ है. यह सजा शेख हसीना को बांग्लादेश की एक अदालत ने अनुपस्थिति में सुनाई है. अभी वह भारत में निर्वासन में हैं. दुजारिक ने कहा कि हम हर परिस्थिति में मौत की सजा का विरोध करते हैं. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क के बयान का पूरा समर्थन किया और कहा कि हम उनकी बात से पूरी तरह सहमत हैं.
कार्यालय ने भी इस फैसले पर की है टिप्पणी
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त वोल्कर टर्क के कार्यालय ने भी इस फैसले पर टिप्पणी की है. जिनेवा से जारी बयान में उनकी प्रवक्ता रवीना शमदासानी ने कहा कि शेख हसीना और उनके गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल के खिलाफ फैसला पिछले साल बांग्लादेश में प्रदर्शनों को दबाने के दौरान हुए गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन के पीड़ितों के लिए एक महत्वपूर्ण पल है.
संयुक्त राष्ट्र के पास नहीं थी कार्यवाही की निगरानी
हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस मुकदमे की कार्यवाही की निगरानी संयुक्त राष्ट्र के पास नहीं थी. इसलिए ऐसे मामलों में खासकर जब मुकदमा अनुपस्थिति में चल रहा हो और मौत की सजा की संभावना हो तो अंतरराष्ट्रीय स्तर के निष्पक्ष सुनवाई और उचित प्रक्रिया के मानकों का पूरी तरह पालन होना चाहिए.
यह पूरी तरह बांग्लादेशी जजों की बनी अदालत
शेख हसीना को सजा सुनाने वाली अदालत खुद को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण कहती है. यह पूरी तरह बांग्लादेशी जजों की बनी अदालत है. मूल रूप से इस अदालत की स्थापना 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना और उनके बांग्लादेशी सहयोगियों की ओर से किए गए नरसंहार के मुकदमों के लिए की गई थी.
शेख हसीना और उनके साथियों पर मुकदमा चलाना था
शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद मौजूदा अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस और उनके समर्थकों ने इस पुरानी अदालत को फिर से सक्रिय किया. इसका मकसद पिछले साल छात्र आंदोलनों को कुचलने के दौरान कथित मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए शेख हसीना और उनके साथियों पर मुकदमा चलाना था. इसी आंदोलन की वजह से शेख हसीना को देश छोड़कर भारत भागना पड़ा था.
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