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The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
जलवायु परिवर्तन ने पूरी दुनिया के सामने एक नया और गंभीर खतरा खड़ा कर दिया है. जहां कभी वर्षा होती थी, वहां अब भीषण सूखा पड़ रहा है, और जो क्षेत्र हमेशा सूखे और बंजर माने जाते थे, वहां अप्रत्याशित रूप से मूसलाधार बारिश हो रही है. वैज्ञानिकों के अनुसार, यह सब जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम है. ध्रुवों पर स्थित ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है. इस बढ़ते जलस्तर ने कई देशों को डूबने के कगार पर ला खड़ा किया है. इन्हीं में से एक छोटा द्वीपीय देश है तुवालु, जो आज अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है.
अभूतपूर्व त्रासदी का सामना कर रहा तुवालु
प्रशांत महासागर के बीचों-बीच बसा छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत द्वीपीय देश तुवालु अब एक अभूतपूर्व त्रासदी का सामना कर रहा है. जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का जलस्तर इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि इस देश का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है. नीले समुद्र, सफेद रेत और शांत वातावरण के लिए मशहूर तुवालु अब धीरे-धीरे लहरों के नीचे समा रहा है. हालात इतने गंभीर हैं कि अब यहां की पूरी आबादी को अपना पैतृक घर छोड़कर ऑस्ट्रेलिया में बसना पड़ेगा. यह दुनिया के इतिहास में पहली बार होगा जब एक संपूर्ण राष्ट्र के नागरिक मजबूरी में अपनी जन्मभूमि को अलविदा कहकर किसी और देश में स्थायी रूप से शरण लेंगे.
बेहद सुंदर और शांत द्वीपीय देश तुवालु
तुवालु, प्रशांत महासागर में स्थित एक बेहद सुंदर और शांत द्वीपीय देश है, जो 9 कोरल द्वीपों से मिलकर बना है. यहां की आबादी केवल लगभग 11,000 है, लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति इसे बेहद संवेदनशील बनाती है. समुद्र तल से औसतन महज 2 मीटर की ऊंचाई पर बसे इस देश के लिए बढ़ता समुद्री जलस्तर रोज़ का खतरा है. ऊंची लहरें और ज्वार-भाटा यहां के लोगों के लिए बाढ़ जैसी स्थिति पैदा कर देते हैं. स्थिति इतनी गंभीर है कि तुवालु के दो द्वीप पहले ही हमेशा के लिए समुद्र में समा चुके हैं.
80 वर्षों में पूरी तरह समुद्र में डूब सकता है तुवालु
जलवायु विशेषज्ञों का मानना है कि अगले 80 वर्षों में तुवालु पूरी तरह समुद्र में डूब सकता है. वहीं, कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान इससे भी अधिक चिंताजनक है. उनके अनुसार यह घटना 80 साल बाद नहीं, बल्कि आने वाले 25 वर्षों में ही घटित हो सकती है.
तुवालु का बड़ा सहारा बनकर सामने आया ऑस्ट्रेलिया
इस गंभीर संकट के दौर में ऑस्ट्रेलिया तुवालु का बड़ा सहारा बनकर सामने आया है. 2023 में दोनों देशों के बीच हुई ऐतिहासिक “फलेपिली संधि” के तहत ऑस्ट्रेलिया ने तुवालु के लोगों के लिए अपने दरवाज़े खोल दिए हैं. इस समझौते के मुताबिक, हर साल 280 तुवालु नागरिकों को ऑस्ट्रेलिया में स्थायी रूप से बसने का मौका मिलेगा, जहां उन्हें स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, रोजगार और आवास सहित सभी आवश्यक अधिकार प्रदान किए जाएंगे.
गौर करने वाली बात है कि तुवालु वर्षों से वैश्विक मंचों पर जलवायु परिवर्तन के खतरे को लेकर लगातार आवाज उठा रहा है. तुवालु के नेताओं का मानना है कि यह चुनौती केवल उनके देश तक सीमित नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक गहरी चेतावनी है. उनका कहना है कि अगर अब भी देश नहीं जागे और ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाले समय में कई सुंदर द्वीपीय राष्ट्र हमेशा के लिए विश्व मानचित्र से लुप्त हो सकते हैं.