Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, वामन भगवान ने राजा बलि से कहा कि- मैं जिस पर कृपा करता हूं , उसका सब कुछ छीन लेता हूँ, जब मैं सब कुछ छीन लेता हूं , फिर भी यदि मेरा भक्त अपने सिद्धांत से नहीं हटता, तब मैं अपना सब कुछ उसे दे देता हूं। जब उसका सब छीनूंगा तब अपना भी सब उसे देना पड़ेगा। अब तुम हमारे मालिक हो गये और मैं तुम्हारा द्वारपाल हो गया।
अब तुम बैठो सिंहासन पर और मैं द्वारपाल बनाकर पहरा दिया करूंगा। सुतल लोक में वामन रूप धारण करके बाहर दरवाजे पर भगवान खड़े हो गये। जब भगवान वापस नहीं आये तो लक्ष्मी जी बहन बनाकर बलि के पास गईं और बलि को राखी बांधी। बलि ने कहा बहन, मेरे पास कुछ रह नहीं गया, फिर भी कुछ मांग लो क्योंकि मैं अपना सब कुछ पहले ही नारायण को दे चुका हूं।
अब जो कुछ है सब नारायण का है। यह शरीर भी नारायण का है। तुमने राखी बांधी है, कुछ तो ले लो। लक्ष्मी जी दरवाजे की ओर इशारा करके बोली इन्हें मुझे दे दो। इनका तुम्हारा नाता क्या है? लक्ष्मी जी बोली जैसे तुम्हारा भक्त और भगवान का नाता है हमारा पत्नी और पति का नाता है। लक्ष्मी जी ने अपना रूप प्रकट कर दिया। बलि ने प्रणाम किया और भगवान को कहा कि आप मेरी बहन के साथ जायें। भगवान ने कहा, चला जाऊंगा लेकिन सिर्फ एक शरीर से जाऊंगा, दूसरे शरीर से यही रहूंगा।
जब तक तुम यहां हो यहीं रहूंगा। आज भी हैं भगवान सुतल लोक में, बलि के पहरेदार बने हुए। रावण बलि से लड़ने गया तो भगवान ने कहा पहले नौकर से लाडले फिर मालिक से लड़ना। रावण ने कहा नौकर से क्या लड़ना है। चल हट पीछे। भगवान ने एक अंगूठे से ऐसी ठोकर मारी कि रावण लंका में जा गिरा और रावण ने कानों को हाथ लगाया। भगवान जिसकी रक्षा करें उसको कौन मारेगा। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।