Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से परिपूर्ण है- श्रीशिवमहापुराण- शौनकादि ऋषियों ने सूत जी से प्रश्न किया, आप समस्त पुराणों के ज्ञाता हैं। आपने समस्त पुराणों और धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया एवं व्याख्या भी की है।
आप वेदव्यास जी के प्रधान शिष्यों में से एक हैं। कृपा करके हमें ऐसी कथा सुनाइए जिसके श्रवणमात्र से मन के दोष निवृत हो जाए। मन के दोषों के कारण ही व्यक्ति पाप करता है और पाप का फल दुःख है। पुण्य और पाप ये दोनों बीज हैं। जब व्यक्ति पाप या पुण्य करता है, उसमें फल लगते हैं।
जब पाप करते हैं तो उसमें फल लगेगा, वह दुःख रूप होगा। शरीर में रोग हो जाना भी किसी पाप का फल है। पुत्र का न होना, पत्नी का अनुकूल न मिलना, पति का अनुकूल न होना, ये सब पापों का ही फल होता है। बिना पाप के दुःख नहीं होता और बिना पुण्य के सुख नहीं मिलता।
पुण्य बिना सुख होय नहिं, होय न दुःख बिन पाप।
काहु को दोष न दीजिये समझ आपने आप।।
शौनकादि ऋषियों ने पूँछा कि जीवों के दोष निकलें,आसुरी सम्पदा नष्ट हो और उनको दैवी सद्गुण प्राप्त हों, इसका कोई श्रेष्ठ उपाय कृपा करके हमें बताइये। जिसके अनुष्ठान से अंतःकरण की शीघ्र शुद्धि हो जाती हो, ऐसा कोई निर्मल साधन या उपाय हमें बताइये। यह प्रश्न करके शौनकादि ऋषि बहुत प्रसन्न हुए।
सूत जी सुनकर कहने लगे कि आप लोग बड़े भाग्यशाली हैं,आपने परम मंगलमय प्रश्न किया है। समस्त शास्त्रों का सिद्धांत भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से परिपूर्ण है, जिसमें भक्ति के साथ ज्ञान और वैराग्य भी जागृत हो ऐसा श्रेष्ठ ग्रंथ जो अमृत स्वरूप है, परम दिव्य है, परम कल्याणकारी है, जिसके श्रवणमात्र से मनुष्य परमगति को प्राप्त कर लेता है। वह है-श्री शिवमहापुराण।
श्रीशिवमहापुराण भगवान शंकर ने स्वयं रचा है। यूं तो सभी ग्रन्थ भगवान शंकर से ही निकलते हैं। सबके बीज मूल भगवान शंकर ही हैं। फिर भी श्रीशिवमहापुराण भगवान शंकर ने ही प्राचीनकाल में रचा था।जिस बैल पर भगवान शंकर विराजमान होते हैं, उसका नाम नंदी है, भगवान शंकर ने श्रीशिवमहापुराण रचकर पहले अपने प्रियगण नंदीश्वर को सुनाया था, नंदी से यह
शिवमहापुराण सनत्कुमार जी को प्राप्त हुआ थाऔर सनत्कुमार जी ने यही पुराण वेदव्यास जी को सुनाया था। श्रीसूतजी कहते हैं कि वेदव्यास जी से मुझे प्राप्त हुआ।जो व्यक्ति श्रीशिवमहापुराण को श्रद्धा से पढ़ेगा या श्रवण करेगा उसे अंतकाल में भगवान् की प्राप्ति अवश्य हो जायेगी। जो व्यक्ति श्रीशिवमहापुराण की कथा सुनता है, उसके ज्ञात-अज्ञात समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं। जान के किए गए या धोखे से हो गए समस्त पापों की समाप्ति श्रीशिवमहापुराण श्रवण मात्र से प्राप्त हो जाती है।
जो व्यक्ति श्रीशिवमहापुराण श्रवण करता है, वह संसार में सभी सुख भोगने के बाद अन्त में परमधाम को प्राप्त होता है, यह भगवान शंकर ने वचन दिया है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।