भारत अब सिर्फ तकनीकी विशेषज्ञता और कम लागत वाला टैलेंट पूल नहीं, बल्कि ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स का भरोसेमंद हब बनकर उभरा है। आज बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारतीय पेशेवरों की संस्कृति में घुलने की क्षमता को सबसे बड़ी ताकत मान रही हैं, जिससे वह वैश्विक कारोबारी आवश्यकताओं के अनुरूप खुद को ढाल रहे हैं।
तकनीक और संस्कृति में भी महारत
क्वेस कॉर्प के जीसीसी डिविजन के चीफ बिजनेस ऑफिसर मोहित माथुर बताते हैं, भारतीय टैलेंट सिर्फ सतही बदलावों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वे अपने पैरेंट ऑर्गनाइजेशन की संस्कृति में गहराई से खुद को ढाल लेते हैं.
उनके मुताबिक, एक सर्वे में सामने आया कि 84% GCC कंपनियाँ सांस्कृतिक समन्वय को रेग्युलेटरी कंप्लायंस से भी बड़ी चुनौती मानती हैं. इसी वजह से आजकल कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को क्रॉस-कल्चरल ट्रेनिंग और विदेशों में असाइनमेंट देती हैं.
अलग देशों के लिए अलग अप्रोच
भारतीय टीमें स्थान और संस्कृति के हिसाब से अपनी कार्यशैली बदलने में माहिर हैं:
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अमेरिकी कंपनियों के साथ वे सीधे, डेटा-बेस्ड और रिजल्ट-ओरिएंटेड कम्युनिकेशन करती हैं.
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जर्मन संगठनों के साथ वे सटीकता और समयबद्धता पर ध्यान देती हैं.
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जापानी पार्टनर्स के साथ वे संयम, शिष्टाचार और सहमति पर फोकस करती हैं.
जर्मन अनुशासन से सिलिकॉन वैली स्पिरिट तक
Mercedes-Benz R&D India (MBRDI) अपने कर्मचारियों को जर्मन कामकाज की शैली से परिचित कराने के लिए सालाना 400 कर्मचारियों को जर्मन भाषा कक्षाओं में प्रशिक्षित करता है.
वहीं, अमेरिका की Pure Storage ने बेंगलुरु सेंटर में सिलिकॉन वैली जैसा इनोवेशन-ड्रिवन माहौल तैयार किया है, जिसमें भारतीय कर्मचारियों को वही स्वतंत्रता और उत्तरदायित्व दिए जा रहे हैं.
फ्रांस की सीख और स्विट्ज़रलैंड का साझा दृष्टिकोण
Thales भारतीय इंजीनियरों को फ्रांस भेजकर उनकी क्रॉस-कल्चरल समझ बढ़ा रहा है, जिससे दोनों देशों की टीमें बेहतर नवाचार और संवाद के लिए तैयार हो सकें.
Novartis का दृष्टिकोण थोड़ा अलग है. वह किसी एक देश की संस्कृति की नकल करने के बजाय एक वैश्विक टीम बनाने में विश्वास करता है, जिसका आधार संस्कृति नहीं, बल्कि मूल्य और उद्देश्य होते हैं.
Target का “गेस्ट एक्सपीरियंस सेंटर”
टारगेट (Target) ने बेंगलुरु में एक वर्चुअल रियलिटी आधारित “Guest Experience Center” की शुरुआत की है, जहाँ भारतीय टीमें अमेरिकी उपभोक्ताओं के शॉपिंग पैटर्न को समझती हैं. इससे न केवल ग्राहक व्यवहार की समझ बढ़ती है, बल्कि भारत में बैठी टीमें अमेरिका के लिए कस्टमाइज़ समाधान भी तैयार कर पाती हैं.
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