Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, पहले ब्रज में दीपावली के अवसर पर देवराज इन्द्र की पूजा होती थी। अन्नकूट प्रारम्भ होने जा रहा था। देवराज इन्द्र का यज्ञ होता था, उसे इन्द्र यज्ञ कहते थे। इन्द्र को अभिमान हो चुका था कि मैं त्रिलोकी का स्वामी हूँ भगवान, इन्द्र का अभिमान मिटाना चाहते थे और ब्रजवासियों को यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि मेरे भक्तों पर यदि संकट आये और भक्त संकट से न मेरा भजन करे तो मैं उसकी रक्षा कैसे करता हूं।
भगवान ने कहा, बाबा ! हम वैष्णव है और हमें भगवान की आराधना करना चाहिये। इन्द्र कभी तुम्हारे पूजन में, यज्ञ में आया नहीं, मेरी बताई युक्ति आप अपना लो तो गिरिराज साक्षात् दर्शन देकर कृतार्थ करेंगे। बाबा के पूंछने पर भगवान ने बताया कि आप छप्पन प्रकार के भोजन तैयार करवाओ और कल जाकर गिरिराज जी की पूजा करेंगे और ब्राह्मणों से लेकर चांडाल पर्यंत सबको भोजन करायेंगे, गायों को घास खिलाई जाये।
चारों तरफ जो मिले उसे खूब खिलाओ और नंगे पांव परिक्रमा करो। फिर देखना बाबा, गिरिराज आपका भंडार भर कर रखेंगे। बड़ी-बडी वादियों से बचाएंगे और कलयुगठ में प्रत्यक्ष देवता कहलाएंगे।सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।