भगवान के प्राकट्य पर महाराज दशरथ ने मनाया उत्सव: दिव्य मोरारी बापू

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, सगुनहिं अगुनहिं नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुद्ध वेदा ।। अगुन अरूप अलख अज जोई। भगत प्रेम बस सगुन सो होई ।। भगवान के अवतार का मुख्य कारण भक्तों का प्रेम है। भगवान भक्तों के लिए अवतार लेते हैं। श्रीमनु महाराज ने सतयुग में तपस्या करके वरदान प्राप्त किया था कि भगवान उनके पुत्र बनेंगे।
वही मनु महाराज त्रेता में श्री दशरथ जी के रूप में जन्म लेकर प्रतीक्षा कर रहे हैं कि भगवान पुत्र बन करके आएंगे, यह काम वैकुण्ठ से बैठे-बैठे नहीं हो सकता था । माता अहिल्या श्राप से पत्थर की शिला बनकर प्रतीक्षा कर रही हैं कि भगवान आएंगे और प्रभु की चरण धूली से मेरा उद्धार होगा। यह काम वैकुण्ठ से बैठे-बैठे नहीं हो सकता था।
माँ शबरी के गुरुदेव श्रीमतंग ऋषि ने कहा था तुम्हें मंदिर नहीं जाना पड़ेगा, मंदिर वाले श्रीराम स्वयं चलकर तुम्हारी कुटिया पर आएंगे, मां शबरी बर्षों से प्रतीक्षा कर रही हैं भगवान आएंगे, यह काम वैकुण्ठ से बैठे-बैठे नहीं हो सकता था। भगवान के अवतार का मुख्य कारण भक्तों का प्रेम है।भगवान अवतार ले करके जगत का अनंत कार्य करते हैं।
असुर मारि थापहिं सूरन्ह राखहिं  निज श्रुति सेतु।
जग विस्तारहिं विषद जसु राम जन्म कर हेतु।।
भगवान दुष्टों का संहार करते हैं।  देवताओं की स्थापना करते हैं। धर्म की मर्यादा की रक्षा करते हैं और इसी बीच में भगवान की जो पवन लीला होती है वही रामायण, भागवत के रूप में प्रकट होती है।जिसे पढ़ सुनकर  पूरा जगत शिक्षा प्राप्त करता है।
श्रीरामचरितमानस में चार कल्पों की कथा है। प्रथम कल्प में जय-विजय को सनकादिकों का श्राप, जय-विजय रावण कुम्भकरण के रूप में जन्म लेते हैं और उनके उद्धार के लिए भगवान अवतार लेते हैं। दूसरे कल्प में सती वृंदा के श्राप को स्वीकार करके भगवान अवतार लेते हैं और वहाँ रावण जालंधर बनता है। तीसरे कल्प में देवर्षि नारद के श्राप से भगवान का अवतार होता है, भगवान शंकर के दो गण जो नारद जी का बहुत अपमान किए थे, देवर्षि नारद के श्राप से रावण कुम्भकरण बनें, और भगवान की लीला हुई।
चौथे कल्प में मनु महाराज ने तपस्या किया, भगवान प्रकट होकर दर्शन देते हैं। मनु महाराज ने भगवान से वरदान मांगा “चाहउँ तुमहिं समान सुत” आप जैसा पुत्र चाहिए। भगवान कहते हैं मेरे जैसा दूसरा कोई नहीं है। भगवान स्वयं ही पुत्र के रूप में आने का वचन देते हैं। चौथे कल्प में ब्राह्मणों के श्राप से प्रतापभानु नाम का राजा रावण बना है और भगवान ने अवतार लेकर उसका उद्धार किये। एक हजार चतुरयुगी का एक कल्प होता है।प्रत्येक कल्प के किसी एक त्रेता में प्रभु अवतार लेते हैं।
कल्प कल्प प्रति प्रभु अवतरहीं। चारु चरित नाना विधि करहीं ।।
रामायण में राम जन्म से पहले रावण जन्म की कथा आती है। सही भी है। अंधकार पहले आता है प्रकाश बाद में किया जाता है। बीमारी पहले आती है दवा बाद में तैयार होती है। रावण अंधकार है समाज के लिए बीमारी है और भगवान श्रीराम प्रकाश रूप हैं और बीमार समाज के लिए उनका चरित्र औषधि रूप है।
त्रेता का चतुर्थ चरण था। धरती पर रावण आदि असुरों का बहुत उपद्रव था। देवताओं ने प्रार्थना किया, तब भगवान ने शीघ्र अवतार लेकर समाज के संकट को दूर करने का वचन दिया। भगवान अयोध्या में महाराज दशरथ के यहां चार रूपों में अवतार लेते हैं।भगवान के प्राकट्य पर महाराज दशरथ ने बड़ा विशाल उत्सव मनाया।
कल की कथा में बाललीला, श्री विश्वामित्र जी के यज्ञ की रक्षा, अहिल्या उद्धार की कथा होगी। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना,।
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