Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीशुकदेवजी ने कहा, परीक्षित चार दिन बीत गये, तुमने जल भी ग्रहण नहीं किया। परीक्षित जी ने निर्जला भागवत सप्ताह की कथा सुनी थी। शुकदेव जी ने कहा कि जलपान ग्रहण कर लो फिर आगे की कथा सुनायेंगे। परीक्षित ने कहा, भगवान! आपके मुख से जो कथा रूपी अमृत बरस रहा है, इसे कानों के द्वारा पी पीकर ऐसी तृप्ति हो रही है कि न भूख लग रही है न प्यास लग रही है, आप सुनाते रहिये, मैं सुनता रहूं और तब तक सुनता रहूं जब तक अंतिम श्वांस है। शुकदेव जी ने कहा, परीक्षित! तुम राजर्षियों में श्रेष्ठ हो।


