पार्थ का मतलब होता है पुरुषार्थ: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीरामजी का अनुसरण कठिन है तो श्रीकृष्णजी को समझना कठिन है। श्रीकृष्णजी को तो बड़े पंडित भी नहीं समझ पाये। श्रीकृष्णजी एक प्रश्नार्थ हैं? और श्रीराम एक पूर्ण विराम हैं। अगर श्रीराम का अनुसरण करोगे तो पूर्ण विराम पाओगे, विश्राम पाओगे। शांति पाओगे।
बड़ा अद्भुत चरित्र है श्रीकृष्ण का। विद्वानों का कहना है भागवत समाधि भाषा का ग्रंथ है, अद्भुत ग्रंथ है, अगर गहराई में जाकर देखेंगे तो उसमें जो रस मिलेगा वह किसी और में कठिन  है। जहां योगेश्वर कृष्ण हैं और जहां धनुर्धर पार्थ अर्जुन हैं। वहां सदा विजय ही विजय है। पार्थ का मतलब होता है पुरुषार्थ।
योगेश्वर श्रीकृष्ण का मतलब होता है भगवत कृपा। मगर आप पार्थ बनोगे तो सारथी बनने के लिए श्रीकृष्ण राजी ही हैं। लड़ने का काम अर्जुन का है। श्रीकृष्ण इनके साथ हैं। याद रखना- हमें पार्थ बनना है। जब हम पार्थ बनेंगे तब भगवान हमारे सारथी बनेंगे। पार्थ बनने का मतलब पुरुषार्थ के लिए तत्पर रहना।
जब कोई सखा, कोई मित्र भगवान की सम्पूर्ण शरण में चला जाता है तो परमात्मा का सिंहासन हिलता है। परमात्मा का हृदय द्रवित होता है। परमात्मा अपनी विभूति का स्मरण करके उसे सहायता देने का प्रयत्न करते हैं।
जीव मृत्यु नहीं चाहता तो भी संसार में जीव को मृत्यु ही मिलती है। जीव दुःख नहीं चाहता तो भी संसार में उसके भाग्य में दुःख ही दुःख आता है। संसार तो सदा मृत्युओं से, आज्ञान से, दुःखों से भरा हुआ असद् रूप ही है। ईश्वर सद्रूप, सुखरूप, और शरणागति पूर्वक स्मरण करने योग्य है।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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