Putrada Ekadashi 2025: हर साल सावन माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी व्रत रखा जाता है. यह व्रत संतान की सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है. वहीं जो लोग संतान की कामना कर रहे हैं उन्हें भी यह व्रत रखकर शुभ फल प्राप्त होते हैं। इस साल पुत्रदा एकादशी का व्रत अगस्त के माह में रखा जाएगा. हालांकि इसकी तिथि को लेकर लोगों के मन में संशय है. ऐसे में आइए जानते हैं कि इस साल पुत्रदा एकादशी का व्रत किस दिन रखा जाएगा.
पुत्रदा एकादशी की सही तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 4 अगस्त 2025 को सुबह 11 बजकर 41 मिनट से हो जाएगी. वहीं एकादशी तिथि का समापन 5 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 12 मिनट पर होगा. उदयातिथि की मान्यता के अनुसार पुत्रदा एकादशी का व्रत 5 अगस्त को रखा जाना शुभ होगा. इस दिन सुबह 5 बजकर 45 मिनट से 11 बजकर 23 मिनट तक रवि योग बन रहा है. इस शुभ योग में पुत्रदा एकादशी के दिन पूजा पाठ करना बेहद शुभ होगा. वहीं पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण 6 अगस्त की सुबह द्वादशी तिथि में किया जाएगा.
पुत्रदा एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, राजा सुकेतुमान और रानी शैव्या के कोई संतान नहीं थी. संतान न होने के वजह से राजा-रानी दोनों ही बहुत दुखी रहते थे. संतान प्राप्त करने की कामना के साथ एक बार राजा सुकेतुमान वन में जाकर ऋषियों से मिले. राजा सुकेतुमान ने ऋषियों को अपने दुख का कारण बताया. इसके बाद एक ऋषि के द्वारा उन्हें बताया गया कि पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से आपको संतान की प्राप्ति अवश्य होगी. ऋषि के निर्देश पर राजा ने रानी के साथ मिलकर विधि-विधान से पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा. पुत्रदा एकादशी के व्रत के प्रभाव से राजा-रानी को एक योग्य पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई.
पुत्रदा एकादशी का महत्व
इस एकादशी के नाम से ही पता चलता है कि पुत्रदा एकादशी आपकी संतान की सुख-समृद्धि के लिए बेहद अहम व्रत है. निसंतान लोगों को इस एकादशी व्रत का पालन करने से योग्य संतान प्राप्त होती है. इसके साथ ही पारिवारिक सुख और धन-धान्य की प्राप्ति भी पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है.
पुत्रदा एकादशी 2025 पूजन विधि
- इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें.
- घर के मंदिर को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें.
- चौकी पर पीला या लाल कपड़ा बिछाएं.
- भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें.
- भगवान विष्णु को गंगाजल, पंचामृत से स्नान कराएं.
- पीला चंदन, फूल, माला, और तुलसी दल चढ़ाएं.
- घी का दीपक जलाएं और विष्णु जी को फल, मिठाई, और पंचमेवा का भोग अर्पित करें.
- विष्णु चालीसा का पाठ करें और अंत में आरती करें.
ये भी पढ़ें :- जिसके जीवन में संयम नहीं, उसका जीवन है व्यर्थ: दिव्य मोरारी बापू