Reporter
The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
ग्लोबल रियल एस्टेट सर्विस कंपनी जेएलएल द्वारा बुधवार को जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में ग्रीन वेयरहाउसिंग सेक्टर में तेजी से वृद्धि होने की संभावना है, जिसमें सर्टिफाइड वेयरहाउस स्पेस 2030 तक वर्तमान स्तर से चार गुना बढ़कर लगभग 27 करोड़ वर्ग फुट होने की उम्मीद है.
भारत के प्रमुख शहरों में बढ़ रहा है ग्रेड ए वेयरहाउसिंग स्टॉक
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 से भारत के प्रमुख शहरों में ग्रेड ए वेयरहाउसिंग स्टॉक बढ़ रहा है, जो 8.8 करोड़ वर्ग फुट से 2.5 गुना बढ़कर 2024 तक 23.8 करोड़ वर्ग फुट हो गया है. यह वृद्धि उच्च गुणवत्ता वाले भंडारण और वितरण सुविधाओं की बढ़ती मांग को दर्शाती है, क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था आधुनिक हो रही है और ई-कॉमर्स का तेजी से विस्तार हो रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, संस्थागत-ग्रेड वेयरहाउसिंग स्पेस में भी तेजी से वृद्धि हुई है, जो 2019 में 28 मिलियन वर्ग फुट से तीन गुना बढ़कर 2024 के अंत तक 90 मिलियन वर्ग फुट हो गई है.
यह उछाल प्रमुख वैश्विक निवेशकों के बढ़ते विश्वास को दर्शाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता मानकों को भारतीय बाजार में ला रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है, संस्थागत ग्रेड ए सप्लाई के 90 मिलियन वर्ग फुट में से लगभग 72% या 65 मिलियन वर्ग फुट ग्रीन सर्टिफाइड है या वर्तमान में ग्रीन सर्टिफिकेशन के विभिन्न चरणों में है। शायद सबसे उत्साहजनक बात यह है कि यह 65 मिलियन वर्ग फुट 2030 तक चार गुना बढ़ने का अनुमान है, क्योंकि संस्थागत प्लेयर्स एलईईडी, आईजीबीसी और दूसरे सर्टिफिकेशन के माध्यम से स्थिरता को प्राथमिकता दे रहे हैं.
यह हरित क्रांति न केवल पर्यावरण के लिए अच्छी है, बल्कि यह बेहतर परिचालन दक्षता, कम ऊर्जा लागत और बढ़ी हुई बाजार क्षमता के साथ भविष्य-सुरक्षित परिसंपत्तियों की ओर एक मौलिक बदलाव का प्रतिनिधित्व करती है. जेएलएल भारत के इंडस्ट्रियल एंड लॉजिस्टिक्स हेड योगेश शेवड़े ने कहा, भारत का ग्रीन वेयरहाउसिंग परिवर्तन न केवल संस्थागत निवेशकों द्वारा समर्थित डेवलपर्स द्वारा, बल्कि कॉर्पोरेट ऑक्यूपायर्स या किरायेदारों द्वारा भी संचालित है. अधिकांश कॉर्पोरेट्स के नेट जीरो लक्ष्य उन्हें ग्रीन सर्टिफाइड वेयरहाउस चुनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
ऑक्यूपायर ऊर्जा खपत में 30-40% की बचत
उन्होंने आगे कहा कि जेएलएल के विश्लेषण से पता चलता है कि ऑक्यूपायर ऊर्जा खपत में 30-40% की बचत (परियोजना जीवनचक्र में) और अपशिष्ट, हरित सामग्री आदि के पुनर्चक्रण के अलावा पानी की बचत पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि रिसर्च में मौजूदा नॉन-ग्रीन कंप्लायंट ग्रेड ए स्टॉक के पुनर्निर्माण और इन परिसंपत्तियों को भविष्य के लिए सुरक्षित बनाने हेतु ग्रीन वेयरहाउस के फंडिंग के अवसरों की भी महत्वपूर्ण संभावनाएं सामने आई हैं.