सितंबर 2025 में नाबार्ड (नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट) द्वारा किए गए द्वैमासिक ग्रामीण सर्वेक्षण के अनुसार, देश के 72.8% ग्रामीण परिवारों को अगले 12 महीनों में अपनी आय में वृद्धि की उम्मीद है. हालांकि यह आंकड़ा जुलाई 2025 में दर्ज किए गए 74.7% से थोड़ा नीचे है, फिर भी पिछले साल सितंबर 2024 के 70.2% के मुकाबले इसमें सुधार देखा गया है.
नाबार्ड की “ग्रामीण आर्थिक स्थिति और भावनाएं” शीर्षक वाली रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि वैश्विक स्तर पर ट्रंप टैरिफ जैसे व्यापारिक जोखिम ग्रामीण भारत की आर्थिक उम्मीदों पर असर डाल सकते हैं.
आय में गिरावट का स्तर सबसे कम
सर्वे में यह भी सामने आया कि आय में गिरावट की बात करने वाले परिवारों का प्रतिशत घटकर 18% रह गया है, जो सितंबर 2024 से शुरू इस सर्वे का सबसे कम स्तर है. एक साल पहले यह आंकड़ा 23.8% था.
वहीं, 44.5% परिवारों ने आय में ठहराव (कोई बदलाव नहीं) की बात कही, जो अब तक का सबसे ऊँचा स्तर है. आय में वास्तविक बढ़ोतरी की पुष्टि 37.5% परिवारों ने की, जबकि पिछले साल यह 37.6% थी.
खपत, बचत और उधारी के रुझान
सर्वेक्षण में यह भी सामने आया कि 23.7% परिवारों ने अपनी बचत में इजाफा किया, जबकि 34.5% परिवारों ने बताया कि उनकी उधारी बढ़ी है. ऋण लेने के मामले में 54.5% परिवारों ने औपचारिक स्रोतों (जैसे बैंक, सहकारी संस्थाएं) से कर्ज लिया, वहीं 21.8% परिवारों ने अनौपचारिक स्रोतों (जैसे साहूकार, रिश्तेदार) से उधारी ली, जिन पर ब्याज दर 17–18% तक पहुंच गई.
नाबार्ड की यह रिपोर्ट ग्रामीण आर्थिक स्थिति की नब्ज को समझने में सहायक है और यह दर्शाती है कि ग्रामीण भारत में उपभोग और ऋण प्रवृत्तियों पर मौसम, अर्थव्यवस्था और नीति का गहरा असर पड़ता है.
ग्रामीण ढांचे और नीतियों का सहारा
नाबार्ड सर्वेक्षण में 76.2% ग्रामीण परिवारों ने बुनियादी ढांचे में सुधार की बात कही. रिपोर्ट में बताया गया कि ग्रामीण परिवारों की आय और खपत को केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं से बल मिल रहा है. इनमें मुफ्त या सब्सिडी वाले भोजन, बिजली-पानी, रसोई गैस, खाद, स्कॉलरशिप, मिड-डे मील और पेंशन जैसी योजनाएं शामिल हैं.
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