हजरत इमाम हुसैन का बलिदान विपरीत परिस्थितियों में भी सत्य का मार्ग अपनाने के लिए करता है प्रेरित: पीएम मोदी

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Ashura-e-Muharram: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को आशूरा-ए-मुहर्रम के मौके पर हजरत इमाम हुसैन (एएस) के बलिदानों को याद किया. उन्होंने सोशल मीडिया हैंडल ‘एक्स’ पर अपने एक पोस्‍ट में कहा कि “हजरत इमाम हुसैन (ए.एस.) का बलिदान धर्म के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की याद दिलाता है. वह लोगों को विपरीत परिस्थितियों में भी सत्य का मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं.”

दरअसल, आशूरा-ए-मुहर्रम का पवित्र उत्सव इस्लामी इतिहास में एक मार्मिक दिन है, जो पैगंबर मुहम्मद के सम्मानित पोते हज़रत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का सम्मान करता है. यह दिन अत्याचार के सामने साहस, बलिदान और दृढ़ता का पर्याय है. इस दिन लाखों  लाखों लोग कर्बला की लड़ाई में सत्य, धार्मिकता और न्याय के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों को श्रद्धांजलि देने के लिए एकत्र होते हैं.

देशभर में मनाया जा रहा 10वां मुहर्रम

बता दें कि आज यानी 6 जून को देशभर में 10वां मुहर्रम मनाया जा रहा है, जिसे आशूरा कहा जाता है. दरअसल, मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है. ऐसे में दुनिया भर के शिया मुसलमान सार्वजनिक शोक मनाते हैं. मुस्लिम कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम का 10वां दिन इमाम हुसैन की शहादत का दिन है, जिन्हें 680 ई. में इराक के कर्बला क्षेत्र में फ़रात नदी के तट पर राजा यज़ीद की सेना ने शहीद कर दिया था.

इमाम हुसैन ने सच्चाई के लिए दे दी परिवार की कुर्बानी

इस दौरान इमाम हुसैन के घिरे हुए उनके परिवार और साथियों को पीने का पानी भी नहीं दिया गया, जबकि वे फरात नदी के तट पर डेरा डाले हुए थे. यहां तक ​​कि 6 महीने के अली असगर को भी यजीद की सेना ने पीने का पानी नहीं दिया था. ऐसे में इमाम हुसैन ने सच्चाई पर बुराई की सर्वोच्चता को स्वीकार करने के बजाय खुद और अपने परिवार और साथियों की कुर्बानी देने का फैसला किया. इसी दिन की याद में शिया मुसलमान जुलूस निकालकर और छाती पीटते है, लेकिन मुहर्रम का शोक शिया और सुन्नी दोनों मुसलमानों के लिए समान रूप से पवित्र है.

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