भारत में है ये गांव जहां सब कुछ है फ्री; लेकिन करना होता है एक नियम का सख्ती से पालन

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Sukaldand Nandora tourism: सोचिए, एक ऐसी जगह जहां नदी का किनारा हो, हरियाली से भरपूर नजारे हों, मनोहारी वादियां हों और साथ में रहने और खाने की सुविधा भी मिले— वो भी नि:शुल्क! अगर आप शहरी जीवन की भागदौड़ से दूर कुछ दिन प्राकृतिक माहौल और ग्रामीण संस्कृति के बीच बिताना चाहते हैं, तो मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले से करीब 45 किलोमीटर दूर स्थित सुकलदंड (नंदौरा) आपके लिए एक आदर्श स्थान है.

पूरी तरह मुफ्त, लेकिन अनुभव अनमोल

सुकलदंड न केवल प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, बल्कि यहां भोजन, आवास और भ्रमण जैसी सभी सुविधाएं नि:शुल्क उपलब्ध हैं. यह पहल की है पर्यावरण प्रेमी अनीस चार्ल्स ने, जिन्होंने 2018 से इस स्थान को विकसित करना शुरू किया. यहां पर आप मिट्टी के घरों, चूल्हे पर पके भोजन, गोबर के कंडे, देसी सब्जियां, और पारंपरिक जीवनशैली के साथ एक सतत व आत्मनिर्भर ग्राम्य अनुभव का आनंद उठा सकते हैं.

विदेशी पर्यटकों के लिए भारत का देसी अनुभव

अब तक 120 से अधिक विदेशी पर्यटक– इटली, फ्रांस, अमेरिका, डेनमार्क आदि देशों से इस स्थान पर आ चुके हैं. यहां उन्हें भारतीय जीवनशैली, संस्कृति और ‘अतिथि देवो भव:’ की परंपरा को करीब से जानने का अवसर मिला है. मिट्टी के मकान और टेंट में ठहरने की व्यवस्था की गई है, जिससे पर्यटक खुद को प्रकृति के और भी करीब महसूस करते हैं.

भारत की प्रतिष्ठा से जुड़ी एक प्रेरणादायक शुरुआत

इस पहल की शुरुआत का कारण भी बेहद दिलचस्प और भावनात्मक है. वर्ष 2015-16 में अनीस चार्ल्स की मुलाकात एक इजरायली महिला पर्यटक से हुई, जिनकी भारत को लेकर नकारात्मक धारणा ने अनीस को झकझोर दिया. उन्होंने तभी ठान लिया कि वह विदेशी पर्यटकों को भारत की असल सुंदरता, संस्कृति और मूल्यों से परिचित कराएंगे.

ग्रामीण जीवन में सकारात्मक बदलाव

सुकलदंड नंदौरा से सटे गांवों— जैसे गोदरी-बटकरी, भगतपुर, डोंगरगांव आदि में आदिवासी और बैगा जनजातियों का निवास है. पर्यटकों के आने से इन गांवों में रोजगार के अवसर बढ़े हैं, साथ ही ग्रामीणों को विदेशी भाषाओं और संस्कृति से भी परिचय मिला है. ग्रामीणों द्वारा मिट्टी के बर्तन, लकड़ी, चूल्हा और अन्य संसाधन उपलब्ध कराने से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है.

बुनियादी सुविधाएं और संभावनाएं

  • देवनदी के किनारे बसा सुकलदंड गर्मियों में पानी की कमी से जूझता है. यहां वाटर वैरप (Water Weir) जैसी संरचनाओं की आवश्यकता है, ताकि सालभर जल उपलब्ध रह सके.

  • विदेशी पर्यटक बालाघाट या गोंदिया तक तो आसानी से पहुंच जाते हैं, लेकिन स्थानीय गाइडिंग सेंटर या टूरिस्ट हेल्प डेस्क न होने से अंतिम यात्रा कठिन हो जाती है. इस ओर ध्यान देना जरूरी है.

आसपास के प्रमुख पर्यटन स्थल

  • लांजी का किरनाई मंदिर – नवरात्रि के दौरान विशाल मेला और दशहरा उत्सव (30 किमी)

  • हट्टा की बावली और लांजी का किला (40 किमी)

  • गुप्तेश्वर महादेव मंदिर, डोंगरगांव – 300 फीट नीचे पहाड़ी में स्थित

  • कान्हा नेशनल पार्क का मुक्की गेट – बाघ दर्शन के लिए प्रसिद्ध (150 किमी)

सुकलदंड कैसे पहुंचें?

  • रेल से: बालाघाट तक पहुंचें, वहां से बड़गांव–बेनीगांव होते हुए सुकलदंड पहुंचा जा सकता है.

  • महाराष्ट्र की ओर से: रजेगांव, किरनापुर, बड़गांव, बेनीगांव होकर आ सकते हैं.

यह भी पढ़े: अब स्वीडन में रहने की चाहत होगी पूरी, बस इतनी सैलरी के साथ छूना होगा आंकड़ा

More Articles Like This

Exit mobile version