तानाशाही तार-तार!

Upendrra Rai
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Chairman & Managing Director, Editor-in-Chief, The Printlines | Bharat Express News Network
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रूस में वैगनर आर्मी की चंद घंटों की बगावत ने पुतिन की सालों-साल पुरानी सत्ता की चूलें हिला दी हैं। पिछले 23 वर्षों में रूस के राष्ट्रपति के रूप में पुतिन ने देश को स्थिरता और सुरक्षा देने वाले रक्षक की जो छवि गढ़ी थी, उसे उनके ही एक पुराने वफादार ने अपने दुस्साहस से महज 23 घंटों में तार-तार कर दिया। इस घटनाक्रम ने केवल रूस की सत्ता ही नहीं, पुतिन के भविष्य को लेकर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यूक्रेन से युद्ध में पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से पुतिन आधी दुनिया के खिलाफ अकेले मोर्चा खोले हुए हैं। फिर अपने ही पुराने बावर्ची और अब वैगनर आर्मी के सरगना येवगेनी प्रिगोजिन की सरपरस्ती वाली सैन्य टुकड़ी के विद्रोह को रोकने में वह विफल कैसे हो गए? वो तो भला हो चेचन लड़ाकों का जो रोस्तोव-ऑन-दॉन से लेकर मॉस्को की सड़कों पर सुरक्षा की ऐसी दीवार बन कर खड़े रहे जिसने रूसी साम्राज्य को मटियामेट करने बढ़ रही वैगनर आर्मी को रोक कर पुतिन की नाक बचा ली वरना देश पर मंडराए पिछले तीन दशकों के सबसे बड़े संकट के समय रूसी सेना तो मौके से ही नदारद थी।

विद्रोह शांत करने के लिए भी बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको को मध्यस्थता के लिए आगे आना पड़ा। दशकों के राज में ऐसा पहली बार हुआ है जब पुतिन अपने खिलाफ हुए विद्रोह को दबाने के लिए दूसरों के आसरे दिखे हैं। खबर तो यहां तक है कि इस दौरान राख हो रही अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए पुतिन ने हर दांव आजमा लिया, लेकिन प्रिगोजिन ने उनका एक फोन तक नहीं उठाया। आखिरकार पुतिन को प्रिगोजिन को बेलारूस जाने और उसके लड़ाकों को गुमराह देशभक्त बताते हुए माफी देने के लिए भी राजी होना पड़ा। ये सब बातें पुतिन की उस सख्त छवि से मेल नहीं खातीं जो दशकों से उनकी पहचान हैं। पुतिन एक ऐसे प्रतिशोधी चरित्र के रूप में दुनिया के सामने पेश होते रहे हैं जो उन्हें अपमानित करने वाले को कभी माफ नहीं करते। लेकिन फिलहाल तो प्रिगोजिन के बेलारूसी निर्वासन से एक बात साफ हो गई है कि अभी भी रूस में उसके सहयोगी शक्तिशाली बने हुए हैं। इसलिए रूस के पुराने इतिहास से वाकिफ दुनिया को अब इस बात में बहुत दिलचस्पी है कि वैगनर आर्मी और प्रिगोजिन का क्या होगा।

हो सकता है कि आने वाले दिनों में प्रिगोजिन का भी वही हश्र हो जो पाला बदलने वाले पुतिन के कई विश्वस्तों का हो चुका है। हो सकता है वो सीरिया या अफ्रीकी देशों में शरण ले ले जहां वैगनर आर्मी के कई महत्वपूर्ण कॉन्ट्रैक्ट हैं। लेकिन अब न तो ये मसला महत्वपूर्ण है कि विद्रोह के समय हालात क्या थे, न ही ये सवाल कि किस तरह प्रिगोजिन पर अपने लड़ाकों को रूस के रक्षा मंत्रालय के अधीन लाने का दबाव डालकर उसे कमजोर किया जा रहा था, वो अपनी बची जिंदगी कहां गुजारता है, उसकी जिंदगी बचती भी है या नहीं। अब सबसे खतरनाक बात यह है कि फिलहाल दबा दी गई विद्रोह की ये चिंगारी आगे क्या रुख अख्तियार करेगी और इसके परिणाम क्या होंगे? रूस और पुतिन के शासन के लिए इस विद्रोह के क्या निहितार्थ हैं? बेलारूस में प्रिगोजिन की मौजूदगी पुतिन के लिए लगातार खतरा बनी रहेगी – खासकर अगर उसके हजारों भाड़े के सैनिक रूसी सेना में शामिल होने से इनकार कर देते हैं।

जिंदा बचा रहा तो प्रिगोजिन क्रेमलिन पर फिर से कब्जा करने की कोशिश भी कर सकता है। बेलारूस में लुकाशेंको की पुलिस और सेना रूस की तरह उस पर दबाव बनाने में सक्षम नहीं है। यूक्रेन पर आक्रमण को लेकर प्रिगोजिन के आरोप पुतिन के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ा आघात हैं। पुतिन के नेतृत्व में रूसी सरकार ने यूक्रेन में युद्ध के लिए देश को एकजुट करने की कोशिश की है, लेकिन प्रिगोजिन के विद्रोह ने सत्ता पर मजबूत पकड़ रखने वाले एक मजबूत नेता के रूप में पुतिन की छवि को कमजोर कर दिया है। पुतिन के सामने इस दुर्भाग्य ने ऐसे समय सिर उठाया है जब मॉस्को अगले महीने होने जो रहे रूस-अफ्रीका शिखर सम्मेलन की मेजबानी के लिए तैयार हो रहा है और एक शक्तिशाली सेना एवं स्थिर राज्य की उसकी छवि खंडित हो चुकी है। ऐसे में अब वो अफ्रीकी देशों को उनकी जरूरतें पूरी करने का आश्वासन किस मुंह से दे पाएगा? ये तो फिर भी छोटी समस्या है।

यूक्रेन पर युद्ध के लिए अमेरिका समेत नाटो देशों से मिल रही चुनौतियों के बीच रूस लगातार भारत के साथ-साथ चीन, एशिया और लैटिन अमेरिका के अन्य देशों के साथ संबंधों को मजबूत बनाने के प्रयासों में जुटा है। वैगनर का विद्रोह इस प्रयास को कमजोर करेगा। इस मुश्किल घड़ी में पुतिन ने खुद आगे बढ़कर गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बात की है। जाहिर है ऐसे वक्त में पुतिन ने अमेरिका दौरे से लौटने के बाद प्रधानमंत्री का हाल-चाल जानने या मॉस्को का मौसम बताने के लिए तो फोन नहीं किया होगा। दिलचस्प बात यह है कि अभी पुतिन और उनके करीबी दोस्त कहे जा रहे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच ऐसे किसी संवाद के आदान-प्रदान की खबर नहीं है। रूस में इतना महत्वपूर्ण घटनाक्रम हो जाने के बाद भी चीन की चुप्पी रहस्यमय है। यह घटनाक्रम यूक्रेन में युद्ध को कितना प्रभावित कर सकता है? फिलहाल इस पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। रूस ने वैगनर सेना को पहले ही अग्रिम मोर्चे से हटा दिया था। लेकिन ये सोचना भी मूर्खता होगी कि वैगनर लड़ाकों के इस विद्रोह से रूसी सेना यूक्रेन में अपने अभियान से विचलित नहीं होगी।

हो सकता है कि तात्कालिक तौर पर यूक्रेन को इसका कोई महत्वपूर्ण लाभ मिलता नहीं दिखे, लेकिन लंबे समय में कुछ भी अप्रत्याशित होने की उम्मीद उसे लड़ाई जारी रखने की नई वजह और ऊर्जा जरूर देगी। प्रिगोजिन के विद्रोह ने पुतिन के आसपास के अभिजात वर्ग की चट्टानी एकता के मिथक को भी तोड़ दिया है। अपनी सेना का उपयोग कर प्रिगोजिन ने पुतिन को दिखाया है कि उनके खिलाफ किसी के लिए भी विद्रोह करना संभव है। जाहिर है इससे पुतिन को चिंता हो सकती है कि दूसरे लोग भी ऐसा ही प्रयास कर सकते हैं। इसका परिणाम ये हो सकता है कि पुतिन का अपने आसपास के लोगों से और आपसी सलाह की प्रक्रिया से ही भरोसा उठ जाए। दूसरे शब्दों में, पुतिन का शासन अब पहले से कहीं अधिक नाजुक नजर आने लगा है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तानाशाह शासक का अपने कमजोर होने की सच्चाई से वाकिफ होना उसके मजबूत बने रहने के भ्रम से ज्यादा खतरनाक हो सकता है। शायद पुतिन आज अपने जीवन के उसी दौर में हैं। वैगनर विद्रोह से अपनी प्रतिष्ठा को लगे आघात का सबसे खतरनाक प्रभाव यह भी हो सकता है कि पुतिन यूक्रेन को जीतने से पहले ही अपनी ताकतवर छवि को बहाल करने के प्रयास में यूक्रेन का समर्थन करने के लिए पश्चिमी देशों को सजा देने की कोई हिमाकत कर दें। दुश्मन पर ऐसी सीधी कार्रवाई एटमी स्ट्राइक भी हो सकती है। बेलारूस में रूस के परमाणु हथियारों की तैनाती भी लगभग पूरी हो चुकी है। इसलिए सवाल अब केवल पुतिन की साख और सत्ता का नहीं है, बल्कि बड़ा सवाल मानवता पर मंडराते खतरे का भी है।

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