Lucknow News: जिओ टूरिज्म से वैज्ञानिक बदलेंगें पर्यटन की तस्वीर! जागरूकता के लिए द प्रिंटलाइंस टीम को सम्मान

Must Read

Lucknow News: आपने जुरासिक पार्क का नाम तो सुना ही होगा जहाँ करोडो वर्ष पुराने डैनासोर के अवशेष हैं. गौरतलब है कि भारत में कई ऐसे राज हैं, जो विश्व को हैरान करते हैं. समय के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन होता गया और जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ भगौलिक परिवर्तन भी होता गया. भारत में करोड़ों वर्षों पुराने कई राज दफ़न हैं और वैज्ञानिकों ने इस पर अपनी रिसर्च तेज कर दी है. सरकार एक नए तरह के पर्यटन को बढ़ावा देना चाहती है. जिससे लोग हेरिटेज और जीवाश्म के बारे में भी जान सके. इसके लिए बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान द्वारा जिओ हेरिटेज और जिओ टूरिज्म जैसे कार्यक्रम की शुरुआत की गई है.

लखनऊ स्थित बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान में एक कार्यशाला का उद्घाटन बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान के गवर्निंग बॉडी के चेयरमैन प्रो. नितिन के. कर्मालकर ने फीता काट कर किया. बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान और भारत सरकार के इस कार्यक्रम को द प्रिंटलाइन्स ने प्रमुखता से कवर किया ताकि समाज में जागरूकता फैलाई सके. इस मौके पर बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान द्वारा द प्रिंटलाइन्स (पार्ट ऑफ़ भारत एक्सप्रेस न्यूज़ नेटवर्क) के लखनऊ संपादक सुशील तिवारी, अभिनेंद्र और साक्षी को सम्मानित किया गया. वहीं भारत सरकार की इस संस्थान ने द प्रिंटलाइन्स के कवरेज को अपने ऑफिसियल वेबसाइट पर स्थान दिया. इस मौके पर बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान की निदेशक डॉ. वंदना प्रसाद और कई सम्मानित वैज्ञानिक मौजूद रहे.

इस मौके पर बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान की निदेशक डॉ. वंदना प्रसाद ने कहा कि 48 देशों में लगभग 195 यूनेस्कों ग्लोबल जियोपार्क है, जिनमें कुछ बहुत छोटे देश भी शामिल हैं. लेकिन भारत में एक भी यूजीजी नहीं है, जबकि हमारे पास 40 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि हमारे पास अभी भी जियोहेरिटेज संरक्षण और जियोपार्क के विकास की अवधारणा के बारे में ज्ञान की कमी है.
डॉ. वंदना प्रसाद ने कहा कि हमें यह भी समझने की जरूरत है कि जियोपार्क जियोलॉजिकल पार्क नहीं है. जियोपार्क केंद्र में भूमिज्ञान के साथ सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का समामेलन है. सामुदाय की भागीदारी हर जियोपार्क का मुख्य पहलू है, इसलिए सरकार और विकास एजेंसियों को इस अवधारणा से अवगत कराना समय की मांग है.

उन्होंने कहा कि विभिन्न राज्यों में कई भू-विरासत विकास परियोजनाएं है और अच्छा काम हो रहा है, लेकिन किसी भी भू-विरासत स्थल की विकास योजना के बारे में कोई केंद्रीय विचार नहीं है. अवधारणा के बारे में कोई उचित समझ नहीं है और यहां तक कि यह भी देखा गया है कि विकास कार्यों ने नुकसान पहुंचाया है. उचित वैज्ञानिक समर्थन की कमी के कारण भू-विरासत स्थल प्रभावित होते है. पहले 100 आईयूजीएस जियोहेरिटेज साइट के बीच मेघालय युग की ‘मावम्लुह गुफा’ की घोषणा के बाद, जिसका नमूना बीएसआईपी के संग्राहलय में है, जियोहेरिटेज साइटों के संरक्षण और भू-पर्यटन क्षमता के बारे में जागरूकता ने गति पकड़ ली है. बीएसआईपी कई भू-विरासत संरक्षण परियोजनाओं में सहायक रहा है और अन्य संगठनों के साथ मिलकर जागरुकता अभियान चलाया है.

बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान के गवर्निंग बॉडी के चेयरमैन प्रो. नितिन के. कर्मालकर ने कहा कि भू-विरासत संरक्षण का स्थायी दृष्टिकोण भू-पर्यटन है. जियोपार्कध्स्थलों को इस तरह से विकसित किया जाना चाहिए कि वे फेंडिंग एजेंसियों पर कम से कम निर्भरता के साथ आत्मनिर्भर हो. इसके अलावा भू-पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पीपीपी मश्र्व्डल को लागू करने की जरूरत है. हालांकि, भारत में जियोहेरिटेज साइटों या जियोपार्क की योजना, विकास और स्थापना में विकास एजेंसियों राज्य सरकारों को सलाहध्समर्थन करने के लिए कोई केंद्र या एजेंसी नहीं है. ऐसे में अलग-अलग प्रयासों का अपेक्षित फल नहीं मिल रहा है.

उन्होंने कहा कि बातचीत के लिए एक मंच की कमी के कारण विभिन्न एजेंसियों के बीच कोई नेटवर्किंग, सहयोग और समझ नहीं है. इसलिए, उपलब्ध विशेषज्ञता के साथ बीएसआईपी, लखनऊ के डायरे में ‘सेंटर फार प्रमोशन आफ जियोहेरिटेज एंड जियोटूरिज्म’ (सीपीजीजी) की स्थापना करना समय की मांग है.

Latest News

पीएम मोदी के PRAGATI प्लेटफॉर्म पर वर्ल्ड फेमस ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की महत्वपूर्ण स्टडी, जानिए विकास परियोजनाओं को कैसे मिली रफ्तार

PM Modi led PRAGATI In India: इंग्लैंड के सबसे पुराने विश्वविद्यालय ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और गेट्स फाउंडेशन ने भारत के...

More Articles Like This