दक्षिण चीन सागर से हिंद महासागर तक… चीन ने युद्धपोतों के निर्माण में अमेरिका को छोड़ा पीछे, भारत पर क्या होगा इसका असर 

Aarti Kushwaha
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

China: पिछले 20 वर्षों में चीन की नौसेना ने काफी तेजी से विस्तार किया है. वहीं साल 2025 में चीन को दुनिया के 60 फीसदी युद्धपोतों के निर्माण के ऑर्डर मिले हैं. बीबीसी की रिपोर्ट की माने तो चीन किसी भी अन्य देश की तुलना में ज्यादा जहाज़ बना रहा है क्योंकि वह इसे किसी और देश के मुकाबले तेजी से ऐसा कर सकता है.

 लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के समुद्री विशेषज्ञ निक चाइल्ड्स ने बताया कि “यह पैमाना असाधारण है… कई मायनों में आंखें फाड़ देने वाला है. चीनी जहाज निर्माण क्षमता संयुक्त राज्य अमेरिका की कुल क्षमता से करीब 200 गुना ज्यादा है.”

बता दें कि डालियान और जियांगनान जैसे विशाल शिपयार्डों से लेकर दक्षिण चीन सागर के सैन्य ठिकानों तक, बीजिंग ने काफी तेजी से युद्धपोत और एयरक्राफ्ट कैरियर के निर्माण में तेजी लाई है. उसकी कोशिश दुनिया की सबसे ताकतवर नौसेना का निर्माण करना और इसमें वो करीब करीब कामयाब भी हो रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, अब चीन के पास 234 युद्धपोत हैं, जबकि अमेरिकी नौसेना के पास जहाजों की संख्या सिर्फ 219 है.

 क्या करना चाहता है चीन?

दरअसल चीन के पास अभी दुनिया का सात सबसे व्यस्त बंदरगाह है. इसके साथ ही उसने ग्लोबल शिपिंग रूट पर अपना दबदबा बना लिया है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग का चीन, निश्चित रूप से समुद्री लहरों पर राज करना चाहता है. जानकारी के मुताबिक, चीन 3 सितंबर को मिलिट्री परेड निकालने वाला है और माना जा रहा है कि इस दौरान वो अपनी ताकत का प्रदर्शन करेगा. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बार बार इस बात पर जोर दिया है कि “मजबूत नौसेना ही राष्ट्रीय सुरक्षा की गारंटी है.”

शी जिनपिंग की कोशिश दक्षिण चीन सागर पर चीन का सौ फीसदी दबदबा बनाने के साथ साथ ताइवान को अपने कब्जे में लेना है. इसीलिए बीजिंग अपनी सैन्य परेडों में नए हथियार, हाइपरसोनिक मिसाइलें, अंडरवाटर ड्रोन और जिन-क्लास परमाणु पनडुब्बियांस दिखाकर साफ संदेश देने की कोशिश कर रहा है, कि वह अब सिर्फ क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि वैश्विक समुद्री शक्ति बनना चाहता है.

हालांकि तुलना करने पर पता चलता है कि अमेरिकी नौसेना टेक्नोलॉजी के लिहाज से चीन से काफी आगे है और उसके पास 11 विशाल एयरक्राफ्ट कैरियर्स हैं, लेकिन ये अंतर तेजी से कम हो रहा है. अमेरिका की जहाजों के निर्माण की क्षमता काफी सुस्त है, जबकि चीन ने वाणिज्यिक और सैन्य शिपयार्ड को “मिलिट्री–सिविल फ्यूजन” रणनीति से जोड़कर उत्पादन क्षमता कई गुना बढ़ा ली है. ऐसे में विशेषज्ञों का मानना हैं कि लंबे युद्ध में ये क्षमता चीन को निर्णायक स्थिति में ला सकते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह इस समस्या का समाधान चाहते हैं, और उन्होंने अमेरिकी जहाज निर्माण को पुनर्जीवित करने और अमेरिका के समुद्री लाभ को फिर से हासिल करने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं.

अमेरिका के लिए बड़ा खतरा बना चीन

वहीं स्ट्रैटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (CSIS) की एक स्टडी से पता चला है कि साल 2019 से 2023 के बीच, चीन के चार सबसे बड़े शिपयार्ड, डालियान, ग्वांगझोउ, जियांगनान और हुडोंग-झोंगहुआ ने 550,000 टन के संयुक्त विस्थापन वाले 39 युद्धपोतों का निर्माण किया है.  जहाजों की संख्या के हिसाब से चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है, जबकि अमेरिकी बेड़े का कुल टन भार अधिक है और वह कहीं ज्यादा शक्तिशाली है.

रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के पास एडवांस बड़े एयरक्राफ्ट कैरियर हैं.  दक्षिण चीन सागर में स्थित चीनी द्वीप प्रांत हैनान से बीबीसी वेरिफाई सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि बीजिंग अपने नौसैनिक अड्डों के विस्तार में बेहिसाब पैसे खर्च कर रहा है. ऐसे में  सबसे बड़ा खतरा ताइवान, फिलीपींस और जापान जैसे देशों को है. हालांकि अमेरिका का कहना है कि वो ताइवान की रक्षा करेगा, लेकिन क्या यूक्रेन की तरह ताइवान के पास लड़ने की क्षमता है?

इस साल की शुरुआत में अमेरिकी रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने चेतावनी दी थी, कि चीन ताइवान के लिए एक खतरा है और उन्होंने एशियाई देशों से रक्षा खर्च बढ़ाने और युद्ध को रोकने के लिए अमेरिका के साथ मिलकर काम करने का आग्रह किया था, लेकिन क्या 2027 तक ऐसा हो पाएगा. और जिस तरह से ट्रंप ने अमेरिका के सहयोगी देशों को नाराज कर दिया है, क्या सहयोगी देश अमेरिका की मदद करेंगे? फिलीपींस ने चीन को रोकने के लिए भारत से ब्रह्मोस मिसाइलें खरीदी हैं, लेकिन क्या वो अकेले चीन को रोक पाएगा, एक्सपर्ट्स इसे असंभव मान रहे हैं.

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