Islamabad: पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का मजहबी शोषण और उनके प्रतीक-चिन्हों का दमन लगातार जारी है. अपनी मूल हिंदू-बौद्ध सांस्कृतिक पहचान के बजाय स्वयं को पश्चिम एशियाई देश के रूप में परिभाषित करना और हिंदू बहुल खंडित भारत के प्रति शत्रुभाव रखना पाकिस्तान के एक राष्ट्र के रूप में जीवित रहने का कारण है. मौजूदा समय में पाकिस्तान भर में प्राचीन हिंदू और बौद्ध विरासत स्थल बर्बरता, उपेक्षा और अवैध कब्जे के बढ़ते खतरों का सामना कर रहे हैं जिससे पाकिस्तान के हिन्दू संगठनों और विशेषज्ञों के बीच गंभीर चिंताएं बढ़ रही हैं.
5000 साल पुराने स्थलों पर अतिक्रमण
इनमें से कई स्थल, जिनमें से कुछ लगभग 5000 साल पुराने हैं, संवेदनशील क्षेत्रों में स्थित हैं और कथित तौर पर उन्हें नुकसान पहुंचाया जा रहा है या उन पर अतिक्रमण किया जा रहा है. प्रभावित क्षेत्रों में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, गिलगित-बाल्टिस्तान, चिलास, हुंजा, शटियाल, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान के कुछ हिस्से शामिल हैं जो प्राचीन मंदिरों, पेट्रोग्लिफ्स और शिलालेखों का घर हैं.
कई स्थलों पर हिंदू और बौद्ध मूर्तियों को बनाया निशाना
शोधकर्त्ताओं का अनुमान है कि अकेले चिलास-हुंजा-शटियाल बैल्ट में 5000 ईसा पूर्व से 16वीं शताब्दी ईस्वी तक के 25,000 से अधिक पैट्रोग्लिफ्स और शिलालेख हैं. पाकिस्तान के चरमपंथी समूहों ने जानबूझकर कई स्थलों पर हिंदू और बौद्ध मूर्तियों को निशाना बनाया है. स्थायी पेंट से नक्काशी को खराब किया है या आकृतियों को खरोंच दिया है. यह सही है कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तानी संविधान सभा में एक पंथनिरपेक्ष पाकिस्तान बनाने की वकालत की थी.
हिंदुओं के साथ बराबर बैठने में घृणा से सिंचित
यह विचार उस द्विराष्ट्र सिद्धांत के उलट था जो स्वतंत्र अखंड भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में हिंदुओं के साथ बराबर बैठने में घृणा से सिंचित था, जिसमें 600 वर्षों तक पराजित हिंदुओं पर राज करने, तलवार के बल पर मतांतरण करने और उनके मंदिरों को तोड़ने की दुर्भावना थी. इसीलिए जिन्ना के निधन के पश्चात पाकिस्तानी नीति-निर्माताओं ने शरीयत को अंगीकार कर लिया.
बहुलतावादी सनातन संस्कृति का विकास
जिन भारतीय क्षेत्रों को मिलाकर 1947 में पाकिस्तान बनाया गया था, वहां हजारों वर्ष पहले वेदों की ऋचाएं गढ़ी गईं. बहुलतावादी सनातन संस्कृति का विकास हुआ. यही कारण है कि वैदिक सभ्यता की जन्मभूमि होने के कारण उस भूक्षेत्र में हिंदू, बौद्ध, जैन और सिखों के कई सौ मंदिर-गुरुद्वारे थे. इनमें से कई आध्यात्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण थे.
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