New Delhi: तुर्की अब पाकिस्तान में ड्रोन असेंबली और निर्माण की सुविधा स्थापित करने जा रहा है. तुर्की की यह सुविधा पाकिस्तान में स्टील्थ तकनीक वाले लंबी दूरी तक उड़ान भरने वाले कॉम्बैट UAV तैयार करेगी. यानी अब आधुनिक युद्धक ड्रोन पाकिस्तान में ही जमीन पर बनाए जाएंगे. वह भी भारत की सीमा से ज्यादा दूर नहीं. इससे पाकिस्तान को ऐसी तकनीक मिल जाएगी. जिसे अब तक अमेरिका या पश्चिमी देशों के नियंत्रण और अनुमति के बिना हासिल करना मुश्किल था.
रक्षा साझेदारी को भी और मजबूत करेगा भारत
विशेषज्ञों की मानें तो भारत अब अपने स्वदेशी ड्रोन्स के विकास में तेजी लाएगा. साथ ही अमेरिका और इज़राइल के साथ रक्षा साझेदारी को भी और मजबूत करेगा. चीन भी इस नए समीकरण से असहज है. पाकिस्तान लंबे समय से चीन के हथियारों पर निर्भर रहा है लेकिन तुर्की की इस एंट्री से बीजिंग के पारंपरिक बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी. तुर्की पहले ही इंडोनेशिया को लड़ाकू विमान बेच चुका है और सऊदी अरब से लेकर सीरिया तक कई देश तुर्की के हथियारों की लाइन में खड़े हैं.
इस तकनीक पर कोई सीधा प्रतिबंध नहीं लगा सकता भारत
यह पूरा घटनाक्रम भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय बन सकता है. पाकिस्तान अपनी ड्रोन क्षमता को तेजी से बढ़ाएगा और भारत इस तकनीक पर कोई सीधा प्रतिबंध या रोक नहीं लगा सकता. इससे सीमा सुरक्षा और भारत की मौजूदा काउंटर-ड्रोन रणनीति पर पुनर्विचार की जरूरत पड़ेगी. तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन पिछले कुछ वर्षों में तेजी से अपना रक्षा नेटवर्क विस्तार कर रहे हैं. उनके नेतृत्व में तुर्की के रक्षा निर्यात 30 प्रतिशत बढ़कर 7.5 अरब डॉलर तक पहुंच चुके हैं.
भारत के लिए यह एक नई सुरक्षा चुनौती
कुल मिलाकर, पाकिस्तान ने तुर्की की मदद से अपनी ड्रोन कमजोरी को दूर कर लिया है. भारत के लिए यह एक नई सुरक्षा चुनौती है, क्योंकि दक्षिण एशिया में अब एक मल्टीपोलर (बहुध्रुवीय) हथियारों की दौड़ शुरू हो चुकी है, जहां न कोई पश्चिमी बिचौलिया है और न कोई राजनीतिक शर्त. यह बदलाव आने वाले वर्षों में क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे को पूरी तरह बदल सकता है.
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