Japan election 2025: जापान के प्रधानमंत्री शिंजो इशिबा की कुर्सी पर इस वक्त खतरा मंडरा रहा है. दरअसल, रविवार को होने वाले ऊपरी सदन के चुनाव से पहले उनके सामने कई गंभीर चुनौतियां खड़ी हैं. इस वक्त देश में तेजी से बढ़ती महंगाई, जिसमें चावल जैसी जरूरी वस्तुओं की कीमतें दोगुनी हो चुकी हैं और अमेरिकी टैरिफ शामिल है. ऐसे में देश में इशिबा की लोकप्रियता गिरती जा रही है, जिससे उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़े हो रहे है.
बता दें कि रविवार को ऊपरी सदन की कुल 248 सीटों में से आधी सीटों पर चुनाव होना है. ऐसे में प्रधानमंत्री इशिबा की पार्टी एलडीपी और उसकी सहयोगी कोमितो को बहुमत के लिए कम से कम 50 सीटें जीतनी होंगी. हालांकि उनके पास पहले से ही 75 गैर-चुनावी सीटें हैं, लेकिन फिर भी यह पिछली 141 सीटों की संख्या से बड़ी गिरावट होगी.
महंगाई और चावल संकट ने बढ़ाई मुश्किल
ऐसे में जानकारों का मानना है कि यदि सदन में इशिबा को बहुमत नहीं मिला, तो एलडीपी के भीतर ही उन्हें हटाने की मांग तेंज हो सकती है. दरअसल, जनता महंगाई, घटती आय और सामाजिक सुरक्षा भुगतान के बोझ से परेशान है. चावल की कीमतें सप्लाई की कमी और वितरण तंत्र की जटिलता के कारण दोगुनी हो चुकी हैं, जिसके चलते बाजारों में पैनिक बाइंग देखी जा रही है. यहा तक कि इसी मुद्दे पर एक कृषि मंत्री को इस्तीफा तक देना पड़ा, जिसके बाद शिंजिरो कोइज़ुमी को नियुक्त किया गया. ऐसे में कोइजुमी ने भंडारण से चावल रिलीज़ कर हालात को संभालने की कोशिश की है, लेकिन प्रभाव सीमित है.
ट्रंप के टैरिफ और व्यापार दबाव ने बढ़ाई चिंता
वहीं, दूसरी ओर अमेरिका भी इशिबा पर व्यापार समझौते को लेकर दबाव बना रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जापान पर अमेरिकी कारों और चावल की बिक्री में प्रगति न करने का आरोप लगाया है. ऐसे में 1 अगस्त से जापान पर 25 प्रतिशत टैरिफ लागू होना है, जिससे उसकी अर्थव्यसवस्था को बड़ा झटका लग सकता है. हालांकि इशिबा ने चुनाव से पहले कोई समझौता करने से इनकार किया है, लेकिन बाद में भी सफलता की कोई गारंटी नहीं है.
विदेशियों पर सख्ती और उभरता राष्ट्रवाद
बता दें कि इस बार का चुनाव विदेशी नागरिकों पर सख्त रवैये से भी प्रभावित हो रहा है. दरअसल, संसेइतो पार्टी ‘जापानीज पहले’ एजेंडे के साथ आई है, जो विदेशियों को कल्याणकारी योजनाओं से बाहर रखने और नागरिकता नियमों को कड़ा करने की मांग कर रही है. साथ ही इसने पारंपरिक लिंग भूमिकाओं और वैक्सीन विरोध जैसे मुद्दों को भी उठा रही है.
कमजोर, लेकिन प्रभावशाली है पार्टी
ऐसे में आलोचकों का कहना है कि यह एजेंडा चुनावी प्रचार और सोशल मीडिया पर जेनोफोबिया फैला रहा है. हालांकि विपक्षी पार्टियां जैसे सीडीपीजे, डीपीपी और संसेइतो जनता के बीच लोकप्रिय हो रही हैं, लेकिन वे एकजुट नहीं हैं. वहीं, इशिबा की कमजोर नेतृत्वशैली से निराश सत्तारूढ़ पार्टी के समर्थक इन्हें विकल्प के रूप में देख रहे हैं. लेकिन अभी तक ये पार्टियां एक साझा मंच नहीं बना पाई हैं. ऐसे में यदि इशिबा की पार्टी बहुमत खोती है तो नई राजनीतिक समीकरण बन सकते हैं.
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