Kolhapuri slippers: भारत की पारंपरिक शिल्पधरों की पहचान कोल्हापुरी चप्पल को अब आधुनिक तकनीक की मदद से वैश्विक बाज़ार में नकली उत्पादों से सुरक्षा दी जा रही है. दरअसल, महाराष्ट्र सरकार के अधीन लिडकॉम (Leather Industries Development Corporation of Maharashtra) ने इन चप्पलों को अब QR कोड आधारित प्रमाणीकरण से जोड़ दिया है.
लिडकॉम के इस पहले से ग्राहकों को न सिर्फ असली और नकली में फर्क समझने में मदद मिलेगी, बल्कि प्रत्येक कारीगर की पहचान और उसके हुनर को सीधे उपभोक्ता से जोड़ने का काम भी करेगी.
ऐतिहासिक विरासत में भी है इन चप्पलों की खासियत
बता दें कि कोल्हापुरी चप्पल की शुरुआत 12वीं सदी में मानी जाती है, और तभी से ये च्प्पले महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सांगली और सोलापुर जिलों की सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान का हिस्सा रही है. प्राकृतिक चमड़े और हाथ से बुनी पट्टियों से बनी इन चप्पलों की खासियत न सिर्फ इनकी बनावट में है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक विरासत में भी है.
इटली के ब्रांड से टकराव ने बढ़ाया मामला
छत्रपति शाहू महाराज के प्रोत्साहन से इस कुटीर उद्योग को 20वीं सदी में नई पहचान मिली. लेकिन इस पारंपरिक शिल्प को अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में उस वक्त जगह मिली जब इटली के लक्ज़री फैशन ब्रांड प्रादा पर आरोप लगा कि उसने अपने आगामी कलेक्शन में कोल्हापुरी चप्पल जैसी डिज़ाइन का उपयोग किया. ऐसे में कारीगरों और GI अधिकार रखने वाले संगठनों ने इसे बौद्धिक संपदा के उल्लंघन के रूप में देखा और विरोध जताया.
प्रादा के विशेषज्ञों ने कोल्हापुर का किया दौरा
इसके बाद प्रादा ने भी यह स्वीकार किया कि उसका डिज़ाइन भारतीय पारंपरिक फुटवियर से प्रेरित है, साथ ही कंपनी ने यह भी स्पष्ट किया कि वह अभी डिज़ाइन स्तर पर ही है और व्यावसायिक बिक्री की कोई योजना नहीं बनी है. हालांकि इसी सिलसिले में कंपनी के विशेषज्ञों की एक टीम ने जुलाई में कोल्हापुर का दौरा भी किया था.
QR कोड से पारंपरिक शिल्प को तकनीकी सुरक्षा
वहीं, लिडकॉम द्वारा उठाया गया QR कोड पहल नकली उत्पादों के बिक्री पर रोक लगाने के दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है. लिडकॉम के मुताबिक, प्रत्येक असली कोल्हापुरी चप्पल अब एक विशिष्ट QR कोड के साथ आएगी, जिसे स्कैन करके ग्राहक यह जान सकेंगे कि चप्पल किसने बनाई, किस जिले में बनी, किस प्रकार की तकनीक और कच्चे माल का उपयोग हुआ, और यह GI टैग से प्रमाणित है या नहीं.
कारीगरों को मिलेगा वैश्विक मंच
लिडकॉम के इस पहल से न केवल नकल करने वालों पर लगाम लगेगा बल्कि यह ग्रामीण कारीगरों को सीधा बाज़ार से जोड़ने में भी मदद करेगी. दरअसल, QR कोड स्कैन करने पर खरीदार को उत्पाद से जुड़े कारीगर या स्वयं सहायता समूह की पूरी जानकारी मिलेगी, जिससे उनकी मेहनत और पहचान को सम्मान मिलेगा.
परंपरा और तकनीक का संगम
एक तरफ जहां कोल्हापुरी चप्पलें भारत की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक हैं, वहीं दूसरी ओर QR कोड जैसी आधुनिक तकनीक इसे नई पीढ़ी और वैश्विक उपभोक्ताओं के बीच प्रासंगिक बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. वहीं, अब पारंपरिक कला के इस डिजिटलीकरण यात्रा से इसके इतिहास और तकनीक मिलकर भविष्य रचने की उम्मीद हैं.
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