Rare Earth Magnet: आज की दुनिया में तकनीक और उद्योग का हर क्षेत्र शक्तिशाली चुबंको पर निर्भर होता है, जिन्हें रेयर अर्थ मैग्नेट कहा जाता है. इन जादुई मैग्नेट्स के बिना स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहन, पवन ऊर्जा से लेकर उच्च स्तरीय रक्षा उपकरणों तक का चलना असंभव है. हालांकि, अब तक इस अत्यंत महत्वपूर्ण संसाधन का उत्पादन और वैश्विक आपूर्ति लगभग पूरी तरह से चीन के हाथ में रही है.
रेयर अर्थ मैग्नेट का वैश्विक सप्लायर बन सकता है भारत
बता दें कि दुनिया में बनने वाले लगभग 90% रेयर अर्थ मैग्नेट चीन से आते हैं, जिससे कई देशों और कंपनियों को इस एक देश पर निर्भर होना पड़ता है. लेकिन अब यह स्थिति बदलने वाली है. भारत सरकार इस दिशा में एक महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रही है, जिससे देश रेयर अर्थ मैग्नेट का एक बड़ा उत्पादक और वैश्विक सप्लायर बन सके.
सूत्रों के मुताबिक, इस योजना के तहत सरकार अपने इंसेंटिव प्रोग्राम को लगभग तीन गुना बढ़ाकर 7,000 करोड़ रुपये तक करने की तैयारी में है, जिसका उद्देश्य देश में ही इन चुंबकों का उत्पादन शुरू करना और दुनिया को चीन पर निर्भरता से मुक्त करना है.
क्यों जरूरी है यह ‘चुंबकीय’ क्रांति?
दरअसल, हाल के वर्षों में चीन ने अपने निर्यात नियमों को और भी सख्त किया है, जिससे वैश्विक कंपनियों के लिए सप्लाई चेन में संकट पैदा हुआ, जिससे ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऊर्जा क्षेत्र की बड़ी कंपनियां इस स्थिति से सीधे प्रभावित हुई हैं. हालांकि पीएम मोदी ने पहले स्पष्ट किया था कि आवश्यक खनिजों और संसाधनों का इस्तेमाल किसी के खिलाफ हथियार की तरह नहीं होना चाहिए. इसी सोच के साथ भारत अपने भीतर स्थिर और भरोसेमंद सप्लाई चेन तैयार करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है.
भारत के इस कदम का लक्ष्य सिर्फ आर्थिक लाभ तक सीमित नहीं, बल्कि देश की तकनीकी और रणनीतिक स्वतंत्रता को मजबूत करना भी है. ऐसे में यदि भारत इस क्षेत्र में सफलता सफलता प्राप्त करता है, तो यह न सिर्फ चीन पर वैश्विक दबाव का मुकाबला करेगा, बल्कि दुनिया में भारत को एक भरोसेमंद सप्लायर के रूप में स्थापित करेगा.
भारत की योजना: ठोस और रणनीतिक
सरकार इस योजना के पीछे एक ठोस रोडमैप तैयार किया गया है. शुरुआत में इसके लिए लगभग 2,400 करोड़ रुपये (290 मिलियन डॉलर) का बजट निर्धारित किया गया था, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 7,000 करोड़ रुपये से अधिक किया जा रहा है. इस भारी बजट का इस्तेमाल प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) और कैपिटल सब्सिडी के रूप में किया जाएगा. इसके तहत पांच बड़ी कंपनियों को सहायता दी जाएगी, जिससे वो भारत में फैक्ट्रियां स्थापित करें या भारतीय कंपनियों के साथ साझेदारी में उत्पादन शुरू करें.
कई स्तरों पर होंगे इस योजना के लाभ:
- देश में नौकरी के अवसर बढ़ेंगे.
- इलेक्ट्रिक वाहनों, पवन ऊर्जा और रक्षा उपकरणों के लिए चीन से मैग्नेट आयात की आवश्यकता कम होगी.
- भारत का वैश्विक टेक्नोलॉजी और रक्षा उद्योग में दबदबा बढ़ेगा.
चुनौतियां और समाधान
यह योजना जितना ही बेहद महत्वाकांक्षी है, उतनी ही इसके राह में चुनौतियां भी हैं, जो निम्न है…
तकनीकी बाधाएं:– रेयर अर्थ मैग्नेट बनाने की उन्नत तकनीक अभी भी चीन के पास केंद्रित है. भारत को इस तकनीक को सीखने और अपनाने में समय और निवेश की आवश्यकता होगी.
खनन की जटिलता:– इन खनिजों का खनन महंगा और कठिन है, साथ ही इनमें कुछ रेडियोधर्मी तत्व भी पाए जाते हैं, जिससे पर्यावरण पर खतरा होता है.
विशेषज्ञों की कमी:– इस क्षेत्र के लिए कुशल और अनुभवी विशेषज्ञों की संख्या भारत में कम है. सरकार इस चुनौती को विदेशों में साझेदारी और विशेषज्ञ प्रशिक्षण के माध्यम से हल करने की योजना बना रही है.
वैश्विक बाजार दबाव:– अगर चीन ने भारत के लिए अपने निर्यात नियम आसान कर दिए, तो सस्ते चीनी मैग्नेट बाजार में उपलब्ध हो सकते हैं. इस स्थिति से नए भारतीय उद्योगों को टिके रहना मुश्किल हो सकता है.
हालांकि इन सब चुनौतियों के बावजूद भारत सरकार ने वैकल्पिक तकनीकों और शोध पर जोर दिया है. उदाहरण के लिए, भविष्य में चुंबकों पर हमारी निर्भरता कम करने के लिए नई तकनीकों पर काम किया जा रहा है.
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