South korea: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस वक्त दक्षिण कोरिया में है जहां उन्हें एक सोने का ताज भेंट किया गया और देश के सबसे बड़े सम्मान ग्रैंड ऑर्डर ऑफ मुगुनघ्वा से भी सम्मानित किया. बता दें कि दक्षिण कोरियां में यह सम्मान बहुत खास शख्सियतों को दिया जाता है. इसके साथ ही दक्षिण कोरिया की एक और खासियत है, जिसे जानने के बाद भी हैरान हो जाएगे.
साउथ कोरिया में अंक 4 से जुड़ी खासियत लोगों को चौकाती है, दरअसल, दक्षिण कोरिया में इस अंक को बहुत अशुभ माना जाता है. इस अंक का इतना खौफ है कि अंक चार कहीं लिखा हुआ नजर भी नहीं आता है. हालांकि इसके पीछे कई कारण बताए जाते हैं.
क्यों दक्षिण कोरिया में अशुभ है 4 अंक?
दरअसल, कोरियन भाषा में 4 अंक का उच्चारण मृत्यु के उच्चारण से मिलता है. जब भी कोई कोरियाई भाषा में 4 अंक का उच्चारण करता है तो वो मौत के उच्चारण जैसा लगता है. कोरियाई भाषा में चार के लिए प्रयुक्त शब्द का उच्चारण ‘सा’ होता है, जो कि ‘मृत्यु’ के लिए प्रयुक्त होने वाले हंजा (चीनी-कोरियाई) वर्ण का भी उच्चारण है. दुर्भाग्य और मृत्यु के साथ ध्वनिगत समानता होने के कारण संख्या चार को एक अशुभ संख्या माना जाता है.
मकान नम्बर में या चौथा फ्लोर है तो क्या लिखेंगे?
इतना ही नहीं 4 अंक का प्रयोग रोजमर्रा की जिंदगी में भी नहीं किया जाता है. बता दें कि नार्थ कोरिया में इमारतों, अस्पतालों और लिफ्ट में कभी भी 4th floor नहीं लिखा होता. इसकी जगह पर वहां F अक्षर का इस्तेमाल किया जाता है. यह संकेत होता है कि F का इस्तेमाल 4 की जगह हो रहा है. इस तरह वहां के लोगों का सामना 4 से नहीं होता. कुछ जगहों पर तो कमरा नंबर 4, 14, 24 आदि होते ही नहीं है.
कितने देशों में ऐसा टेट्राफोबिया?
4 नम्बर से जुड़े इस खास तरह के डर को टेट्रोफोबिया भी कहा जाता है. खास बात ये है कि इस अंक को लेकर डर सिर्फ कोरिया ही नहीं, चीन, जापान और ताइवान में भी है. यहां के लोगों का मानना है कि 4 अंक को अपने जीवन में लाने या इससे जुड़ी कोई चीज खरीदते हैं तो दुर्भाग्य पास आता है. ऐसे में बीमारी और मौत करीब आती है.
क्या है 4 नंबर से जुड़ी मान्यता?
बता दें कि प्राचीन चीन में संख्याओं को उनके उच्चारण के आधार पर शुभ-अशुभ माना जाता था. ऐसे में चीनी भाषा में चार (四, sì) का उच्चारण मृत्यु (死, sǐ) से मिलता-जुलता है. धीरे-धीरे यही मान्यता कोरिया, जापान और वियतनाम तक पहुंची. इसके बाद जब कोरिया ने चीनी लिपि (हंजा) और संस्कृति अपनाई, तो यह डर वहीं से आया और लोगों में बढ़ता चला गया.
ऐसे में इन देशों में मान्यता रही है कि यदि किसी इंसान की उम्र या घर का नम्बर 4 अंक पर खत्म हो रहा है तो वो इंसान बुरे समय या बीमारियों का सामना करेगा. धीरे-धीरे इस अंक के इर्द-गिर्द लोगों की अलग-अलग सोच बनती गई जो समय के साथ और गहरी होती गई.
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