Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मन के कहने में नहीं चलना चाहिए। जब तक मन वश में नहीं हो जाता तब तक इसे अपना परम शत्रु मानना चाहिये। जैसे शत्रु के प्रत्येक कार्य पर निगरानी रखनी पड़ती है वैसे ही मन के भी प्रत्येक कार्य को सावधानी से देखना चाहिये।
जहां कहीं यह उल्टा सीधा करने लगे वहीं इसे धिक्कारना और पछाड़ना चाहिए। मन की खातिरदारी भूलकर भी नहीं करना चाहिये। यद्यपि यह बड़ा बलवान है, कई बार इससे हारना होगा, पर साहस नहीं छोड़ना चाहिए। जो हिम्मत नहीं हारता वह एक दिन मन पर अवश्य विजय प्राप्त कर लेता है। यह मन बड़ा ही चतुर है।
कभी डरायेगा, कभी फुसलावेगा, कभी लालच देगा, बड़े-बड़े अनोखे रंग दिखलावेगा, परन्तु कभी इसके धोखे में नहीं आना चाहिये। भूलकर भी इसका विश्वास नहीं करना चाहिये। इस प्रकार करने से इसकी हिम्मत टूट जायेगी, लड़ने और धोखा देने की आदत छूट जायेगी। अन्त में यह आज्ञा देने वाला न रहकर सीधा-सादा आज्ञा पालन करने वाला सेवक बन जायेगा।
मन लोभी मन लालची, मन चंचल मन चोर।
मन के मते न चालिये पलक में और।।
मन कभी निकम्मा नहीं रह सकता, कुछ न कुछ काम इसको मिलना ही चाहिए, अतएव इसे निरन्तर काम में लगाये रखना चाहिए। निकम्मा रहने से ही इसे बुरी बातें सूझा करती हैं, अतएव जब तक नींद न आवे तब तक चुने हुए सुंदर मांगलिक कार्यों में इसे लगाये रखना चाहिये। जागृत समय के सत्कार्यों के चित्र ही स्वप्न में भी दिखाई देंगे।


