Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, गोपियों को उपदेश देने के लिये आये हुए शुष्क ज्ञानी उद्धव जी को कृष्णमयी राधिका ने कहा, “अरे उद्धव जी ! छः शास्त्र और चार वेद पढ़ने के बाद भी तुम कोरे के कोरे रह गये हो! तुम्हारे वे श्री कृष्ण केवल मथुरा में ही रहते हैं। मेरा कृष्ण तो वृक्ष के पत्ते-पत्ते में बैठा हुआ है।
मेरी देह के रोम-रोम में बसा हुआ है, फिर मथुरा के कृष्ण की मुझे क्या परवाह है?” उद्धव जी समझ गए कि आज तक केवल तोते की तरह अद्वैत का पाठ ही करते रहे हैं और गोपियों ने जबकि कोई अध्ययन नहीं किया, जीवन में भजन के बल पर अद्वैत की अनुभूति प्राप्त कर ली है और गोपियों के चरणों में लौटते हुए उद्धव जी ने करुणापूर्ण स्वर में कहा ” मुझ पर भी कृपा करो और मेरे हृदय को भी श्री कृष्ण-प्रेम में भिगो दो।” प्रभु-प्रेम के बिना ज्ञान-ध्यान व्यर्थ है।
ज्ञान का फल है – भ्रम की निवृत्ति। और प्रभु-प्रेम का फल है- परमात्मा की प्राप्ति और यदि प्रभु-प्राप्ति का फल नहीं मिल सका तो ज्ञान या भक्ति से क्या लाभ है? विषयानंद का त्याग करने पर ही ब्रह्मानंद का अनुभव होता है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।