भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेमिसाल रहा यह साल, इन 6 कारकों ने विकास को दी रफ्तार

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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हम 2025 के अंतिम पड़ाव पर हैं और नया साल 2026 अब कुछ ही दिन दूर है. यह वर्ष भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहा. इस दौरान कई बदलाव और नई घटनाएं सामने आईं, जिन्होंने देश के विकास, लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी और शेयर बाजार पर गहरा असर डाला. कुछ क्षेत्रों में तेजी देखी गई, तो कुछ क्षेत्रों में बदलाव धीरे-धीरे हुआ. इस रिपोर्ट में हम साल 2025 के छह प्रमुख कारकों पर नजर डालेंगे, जिन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को आकार दिया और इसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
साल 2025 में भारत एक बार फिर दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शीर्ष स्थान पर रहा. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इस वित्त वर्ष के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि का अनुमान 6.7% से बढ़ाकर 6.9% किया है, जबकि अगले वित्त वर्ष के लिए यह अनुमान 6.5% से बढ़कर 6.9% तक पहुँच गया है. इसका कारण प्रत्यक्ष आयकर छूट, उदार मौद्रिक नीति, जीएसटी सुधार और अमेरिका के साथ संभावित व्यापार समझौते हैं.
आईएमएफ और आरबीआई के अनुसार, साल 2025 में इंफ्रास्ट्रक्चर, मैन्युफैक्चरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सरकारी निवेश से विकास को काफी गति मिली.
इसके अलावा, अक्टूबर 2025 में खुदरा महंगाई केवल 0.25 प्रतिशत रही, जो आरबीआई के 4 प्रतिशत लक्ष्य से बहुत कम है. वहीं दिसंबर एमपीसी बैठक में आरबीआई ने रेपो रेट को 25 बेसिस पॉइंट घटाकर 5.25 प्रतिशत कर दिया. इसी के साथ इस साल चौथी बार केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट को कम किया है, जिससे लोगों को लोन लेना आसान हो गया और आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा मिलेगा. इतना ही नहीं, इस वर्ष आईटी, बीपीओ, कंसल्टिंग और रिमोट हेल्थ/एजुकेशन जैसी सेवाओं का निर्यात मजबूती से बढ़ा. आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार, मजबूत सेवा निर्यात और रेमिटेंस ने चालू खाता संतुलन बनाए रखने में मदद की,
भले ही ऊर्जा की कीमतों और टैरिफ से जुड़े अनिश्चितताएँ बनी रहीं. अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025 तक 86 आईपीओ ने लगभग 1.71 लाख करोड़ रुपए जुटाए, जो पिछले साल की तुलना में लगभग दोगुना है. इन नई लिस्टिंग्स में अधिकतर ओवरसब्सक्राइब हुईं और निफ्टी की तुलना में लगभग चार गुना बेहतर रिटर्न दिया. यह सफलता घरेलू निवेशकों, म्यूचुअल फंड्स और रिटेल निवेशकों की सक्रिय भागीदारी से संभव हुई. हालांकि, इस दौरान विदेशी निवेश में अस्थिरता रही. वहीं, घरेलू निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार को मजबूती देने में अहम भूमिका निभाई. एसआईपी, बढ़ते डीमैट अकाउंट्स और गिरावट पर खरीदारी की प्रवृत्ति ने बाजार में स्थिरता और मजबूती बनाए रखी.
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