दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) विधेयक, 2025 में प्रस्तावित संशोधन बैंकों और अन्य कर्जदाताओं के लिए राहत लेकर आ सकते हैं. इन बदलावों के जरिए कर्ज वसूली की प्रक्रिया को तेज करने का लक्ष्य रखा गया है, क्योंकि मौजूदा व्यवस्था में मामलों के निपटारे में काफी समय लग रहा है. सोमवार को जारी आईसीआरए की रिपोर्ट के अनुसार, आईबीसी 2025 में समूह दिवालियापन, सीमा-पार (क्रॉस-बॉर्डर) दिवालिया मामलों और कर्जदाताओं द्वारा शुरू की जाने वाली दिवालिया प्रक्रिया से जुड़े प्रावधान शामिल किए गए हैं, जिससे मामलों को अधिक प्रभावी और तेजी से सुलझाने में मदद मिल सकती है.
आईसीआरए की रिपोर्ट के अनुसार, नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) और एनसीएलएटी में कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने और कानूनी सुधारों से अदालतों पर बोझ कम होगा. रिपोर्ट का मानना है कि संसद में पेश किए गए आईबीसी संशोधन और कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) और भारतीय दिवालियापन और दिवाला बोर्ड (आईबीबीआई) के सुझावों से कर्ज की वसूली का समय कम होगा और बैंकों को ज्यादा पैसा वापस मिलेगा. हालांकि यह सुधार फिलहाल रियल एस्टेट सेक्टर पर लागू नहीं होंगे.
रिपोर्ट के अनुसार, रियल एस्टेट और निर्माण क्षेत्र में अब भी बड़ी संख्या में दिवालिया मामले लंबित हैं, लेकिन इस सेक्टर के लिए फिलहाल किसी बड़े विशेष सुधार का प्रस्ताव नहीं रखा गया है. आईसीआरए का मानना है कि घर खरीदारों के हितों की सुरक्षा और रुकी हुई परियोजनाओं को पूरा करने के लिए रियल एस्टेट क्षेत्र में अलग से सुधारों की आवश्यकता है. अक्टूबर 2025 में आईबीसी कानून के 9 वर्ष पूरे हो गए हैं. इस अवधि के दौरान इस कानून के माध्यम से लगभग 4 लाख करोड़ रुपये की वसूली की गई है, जो अन्य वैकल्पिक तरीकों की तुलना में अधिक प्रभावी मानी जा रही है. सितंबर 2025 तक कुल 8,658 कंपनियों के मामले आईबीसी के तहत आए, जिनमें से करीब 63 प्रतिशत मामलों का निपटारा किया जा चुका है.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बैंकों को कई मामलों में भारी नुकसान उठाना पड़ा और उन्हें केवल करीब 32 प्रतिशत राशि ही वापस मिल पाई. इसी वजह से आईबीसी में बड़े बदलाव की जरूरत महसूस हुई और अगस्त 2025 में 7वां संशोधन बिल लोकसभा में पेश किया गया. आईसीआरए की सीनियर वाइस प्रेसिडेंट मनुश्री सागर ने बताया कि मार्च 2025 तक कर्ज वसूली की स्थिति में सुधार देखने को मिला था, लेकिन 2026 की पहली छमाही में इसमें दोबारा गिरावट दर्ज की गई. उनके अनुसार, सितंबर 2025 तक लंबित करीब 75 प्रतिशत मामलों में 270 दिनों से अधिक का समय बीत चुका है.
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि एनसीएलटी में फिलहाल 30,000 से ज्यादा मामले लंबित हैं. मौजूदा संसाधनों और क्षमता के आधार पर इन सभी मामलों के निपटारे में 10 साल से अधिक समय लग सकता है. हालांकि, सरकार एनसीएलटी और एनसीएलएटी की बेंचों की संख्या बढ़ाने की योजना पर काम कर रही है, जिससे मामलों के निपटारे की रफ्तार तेज होने की उम्मीद है. वर्तमान में आईबीसी के तहत मामलों को सुलझाने में औसतन करीब 700 दिन लग रहे हैं, जबकि निर्धारित समय सीमा केवल 330 दिन की है.