Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, आशीर्वाद मांगने से नहीं मिलते। वे तो बुजुर्गों की सेवा करने एवं उनके आह्लादित हृदय के द्रवित होने पर प्राप्त होते हैं। गुरुजनों के द्रवित हृदय से निकले हुए शब्द कल्याणकारी ही होते हैं।
गुरूदेव सांदीपन ने तो श्रीकृष्ण से गुरुदक्षिणा के रूप में विद्या के वंश की बृद्धि ही मांगी थी, परन्तु गुरुपत्नी की आकांक्षा सागर में डूबकर मर गये पुत्र को पुनर्जीवित करने की थी, ताकि बिंदुवंश का नाश न हो। श्रीकृष्ण तुरन्त दौड़कर समुद्र के पास गये और गुरुपुत्र को गुरुपत्नी के सामने ले आये।
गुरुपत्नी के समक्ष उस बालक को प्रस्तुत करते समय श्रीकृष्ण ने जिस नम्रता का आदर्श उपस्थित किया, उसे देखकर गुरुपत्नी का हृदय गद्गद् हो गया और उस द्रवित हृदय से आशीर्वाद के निर्झर फूट पड़े, ” कृष्णा तेरी हमेशा विजय हो। मेरा आशीर्वाद है कि तेरे घर में लक्ष्मी,जिह्वा पर सरस्वती और जगत में कीर्ति बढ़ती ही जाय, बढ़ती ही जाय।”
बताओ हृदय के आशीर्वाद तो इसी रीति से मिलते हैं, बताओ, इसी प्रकार के आशीर्वाद फलते हैं न! शरीर के मरने पर मुक्ति नहीं मिलती। मुक्ति तो मन की मृत्यु होने पर प्राप्त होती।सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।