Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मन पानी के समान है। जिस प्रकार पानी हमेशा नीचे की और बहना पसन्द करता है, उसी तरह मन भी संसार के विषयों से आकर्षित होकर पवन की राह ही जाना पसन्द करता है। पानी की तरह मन की आदत भी नीचे की ओर ढुलकने, संसार के विषयों में बहते रहने एवं सम्पत्ति का चिन्तन करने की होती है।
यही आदत उसे पाप कर्म की ओर प्रेरित करती है। जब मन की यह आदत नष्ट होगी और ऊर्ध्वगामी बनने के लिए इसको प्रेरित किया जा सकेगा, तभी जीवन में शान्ति और संतोष पल्लवित हो सकेंगे। किन्तु मन को ऊर्ध्वगामी बनाने की रीति क्या है? नीचे बहने वाले पानी का जब यंत्र से सम्बन्ध स्थापित होता है, तब वह ऊपर चढ़ता है। उसी प्रकार नीचे ढुलकने वाले मन को जब परमात्मा के नाम रूपी मंत्र का संग प्राप्त होता है तो ऊर्ध्वगामी बनकर प्रभु के पास पहुंच जाता है।
अतः मन को हमेशा मंत्र में – प्रभु के नामस्मरण में पिरोया हुआ रखो, ताकि उसका सुधार हो सके एवं प्रभु के पास पहुंचने की शक्ति अनन्त गुना हो सके। बहुत-सी पुस्तकें पढ़ने या अनेक तीर्थ की यात्रा करने से मन का सुधार नहीं होता। मन तो मंत्र के साथ मैत्री स्थापित करके सुधरता है।मन की मृत्यु ही मोक्ष है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।