इंद्रियों के द्वारा मनमाना सुख भोगना है सुरुचि का मतलब: दिव्य मोरारी बापू

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, निराधार के बानो सहायक, सदाचार के बानो विधायक। उत्तानपाद के दो रानियां थीं। सुरुचि राजा की प्रिया रानी थी, जबकि सुनीति उपेक्षित थी।
एक दिन उत्तानपाद सुरुचि के पुत्र उत्तम को गोद में लेकर बैठे थे। उसी समय सुनीति का पुत्र ध्रुव भी उनकी गोद में बैठने के लिए आया। सुरुचि ने उसे दुत्कार दिया तो मन सुनीति के कहने पर ध्रुव ने वन में जाकर प्रभु को प्राप्त किया।
यह उत्तानपाद और कोई नहीं, पैर ऊपर और सिर नीचा रखकर मां के गर्भ में सोने वाला प्राणी ही है।सुरुचि का मतलब इंद्रियों के द्वारा मनमाना सुख भोगना है। सुनीति यानि इच्छा पर काबू रखने की शक्ति। उत्तम (उद+तम) ईश्वर से वंचित विषयानंद और ध्रुव अविचल शांति प्रदान करने वाला ब्रह्मानंद। जीव को रुचि प्यारी लगती है और नीति पसंद नहीं आती, इसलिए इंद्रियवृत्ति से प्राप्त विषयानंद में यह रम जाता है और नीतिमय संयमी जीवन द्वारा प्राप्त होने वाले ब्रह्मानंद की उपेक्षा करता है।
किंतु इसी से उसके भाग्य में चौरासी का आवागमन चक्र लिखा रहता है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर(राजस्थान).
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