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The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, प्रभु-प्रेम के बिना ज्ञान शोभा नहीं देता। ब्रह्मज्ञानी को ब्रह्म प्रेमी बनना पड़ता है, जहाँ कथा-कीर्तन आदि होते हैं, वहाँ प्रभु गुप्त रूप से आते हैं। क्योंकि प्रभु को तो परदे के पीछे रहना ही पसन्द है। प्राणी का प्रेम सोलह आने मुझ पर है – ऐसा विश्वास होने पर ही प्रभु माया का परदा हटाते हैं।
जिसकी आँख में प्रभु के दर्शन के लिए आँसू या आतुरता नहीं है, उसका ज्ञान किस काम का? कोई भी सत्कर्म करते समय यदि प्रभु का स्मरण न रहे और प्रभु-प्रेम में हृदय पिघल न जाय, तो ऐसा सत्कर्म किस काम का? सत्कर्म भी प्रभु से ही सार्थक बनते हैं।
केवल ज्ञान से नहीं, अपितु प्रभु के प्रेम में द्रवित होने पर ही हृदय की शुद्धि होती है। कोमल हृदय में ही प्रभु का ज्ञान स्थिर रहता है और प्रभु के प्रेम से ही हृदय कोमल बनता है। जो ईश्वर को अन्तर में ढूंढने के बजाय बाहर ढूंढता है, उसकी फजीहत होती है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।