Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, द्रव्य उपार्जन करना सरल है। पुरुषार्थ करना कुदरत की देन है। परन्तु द्रव्य उपार्जन के लिए संघर्ष करना और सफल होकर उसी द्रव्य का वितरण करना कठिन है। चार पुरुषार्थ हैं धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। उसी प्रकार चार आश्रम हैं। ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वान प्रस्थाश्रम, और संन्यस्थाश्रम।
ब्रह्मचर्याश्रम में विद्या, गृहस्थाश्रम में धन कमाना हमारा कर्तव्य है। ये दोनों पाकर समाज का कल्याण करना। जो ये चीजें नहीं करता वह अच्छा नहीं है। ज्ञान “स्व” के लिये और कर्म अन्य के लिए हो यही भक्ति है। जो विभक्त नहीं है वही तो भक्त है। कबीरा सोई पीर है जो जानत पर पीर। जो पर पीर न जानिय वो तो है अपीर (निष्ठुर)।। पर हित सरिस धरम नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।
