Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवान् श्री कृष्ण की कथा में श्रीशुकदेवजी जैसे महायोगी और राजा परीक्षित जैसे श्रेष्ठ गृहस्थ को एक समान आनन्द मिलता है। इसका कारण यह है कि श्रीकृष्ण महायोगी भी हैं और श्रेष्ठ गृहस्थ आश्रम का दर्शन भी उनकी लीला में होता है।
सामान्यतया योगी जंगल में होता है, घर परिवार में रह करके उच्चकोटि का योग नहीं चल सकता। लेकिन भगवान अपने चरित्र से बताते हैं कि- घर गृहस्थ का निर्वाह करते हुए भी ज्ञान, ध्यान, योग साधना सब कुछ सम्भव है।
योगी यदि घर संसार में ज्यादा रहेगा तो उसका पतन हो जायेगा, यदि घर संसार वाला अधिक योगाभ्यास करने जायेगा तो रोगी हो जायेगा, परन्तु श्री कृष्ण के चरित्र में योग और घर संसार का भारी सम्बन्ध है।
भगवान् श्रीकृष्ण सोलह हजार एक सौ आठ महारानियों के साथ रहकर ज्ञान, ध्यान, योग, भक्ति में स्थित रहकर बताते हैं कि-सामान्य मानव अपने घर परिवार में रहकर भी कल्याण के सारे साधनों पर चल सकता है और अपना कल्याण कर सकता है। हर व्यक्ति सब कुछ कर सकता है, अगर हम कुछ नहीं कर सके तो इसका कारण हमारा आलस्य, निद्रा,तन्द्रा और कुसंग ही है।
विशाल गृहस्थ का दर्शन कराते हुए भी भगवान् श्री कृष्ण के चित्त में किसी प्रकार का विकार स्पर्श नहीं करता, हम सबके जीवन में किसी प्रकार का विकार आता है तो उसके पीछे कारण सत्संग का अभाव ही है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सत्संग अति आवश्यक है।
इसीलिए श्री कृष्ण सांसारियों को भी अच्छे लगते हैं और संन्यासियों को भी प्यारे लगते हैं। दुरुपयोग होने पर पैसा जहर है। सदुपयोग होने पर पैसा अमृत है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना,।