Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, स्वयं की सुख-सुविधा देखते हुए जो दूसरों को सुखी करने का प्रयत्न करता है, वह सज्जन है। स्वयं के सुख के लिए दूसरों को दुःखी करने में निर्दयता की सीमा पर पहुंचा हुआ व्यक्ति दुर्जन है और जो दूसरों को सुख-शान्ति प्रदान करने के लिए स्वयं को अपार कष्टों में डालता है और स्वयं को घिस देता है, उसका नाम है संत।
चन्दन और मेहँदी के समान ही संतों का स्वभाव होता है। दूसरों को सुख, शीतलता और शोभा प्रदान करने के लिए चंदन घिस जाने में ही कृतार्थता का अनुभव करता है। इसीलिए चन्दन का स्थान संतों और सर्वेश्वर के ललाट पर है। इसीलिए मेहंदी को देखकर माताओं – बहनों का अन्तर उमंग से उछलने लगता है। इसीलिए चन्दन पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।
इसीलिए मेहँदी मांगल्य का चिन्ह मानी जाती है। यह चन्दन और यह मेहँदी हमारे अन्तर में भी दूसरे के लिए बलिदान होने की प्रेरणा उत्पन्न करे।जिसके जीवन में संसार का सुख मुख्य है, वह भगवान के महत्व को न समझकर क्षुद्र जीवन जीता है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।