Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, नगर दर्शन लीला में पूरे समय भगवान श्री राम के साथ जनकपुर के बच्चे रहे। भगवान के समीप रहने के लिए जीवन में बच्चों जैसी सरलता होना आवश्यक है। हम जितना जटिल होते जाते हैं, उतना हम भगवान से दूर होते जाते हैं।सरल शब्द में तीन अक्षर हैं। स-र-ल अगर हमारे आपके हृदय में स=सीता,र=राम,ल=लक्ष्मण तीनों का निवास हो जाए तो हृदय और जीवन सरल हो जाता है।
सरल होना नवमी भक्ति है। भजन सत्संग करने से जीवन में सरलता आती है। पुष्प वाटिका प्रसंग में भगवती सीता को भगवान राम का दर्शन हुआ। भगवान के दर्शन के लिए पुष्पवटिका प्रसंग में पूज्य गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी महाराज ने सूत्र दिए हैं, जिससे भगवान का दर्शन हो सकता है।सर्व प्रथम भगवती सीता वाटिका में आती हैं। श्रीरामचरितमानस में वाटिका का आध्यात्मिक अर्थ है संतों का सानिध्य।
संत सभा चहुँ दिसि अवराई। श्रद्धा ऋतु बसन्त्त सम गाई।।
भगवती सीता ने सरोवर में स्नान किया। आध्यात्मिक दृष्टि से हमारा जीवन ऐसा निर्मल हो कि हम संतों के समाज में स्थान पा सकें। यह दो कार्य हमसे वन गये तो कोई सद्गुरु हमको ले जाकर भगवान का दर्शन करा देगा।धनुष यज्ञ प्रसंग में सफलता के चार सूत्र बताये गये हैं। किसी भी कार्य में सफल होने के लिए सबसे पहली बात है हमारी भावना अच्छी हो।
सफलता का दूसरा सूत्र हम अपने इष्ट देव का स्मरण हर कार्य के प्रारम्भ में करें। सफलता का तीसरा सूत्र कार्य कितना भी बड़ा हो लेकिन घबराएं नहीं और सफलता का चौथा सूत्र माता-पिता गुरुजन का आशीर्वाद है। परशुराम संवाद में अठारह दोहे हैं। श्रीमद्भागवत गीता जैसा इसका अभिप्राय है। अर्जुन योद्धा है। अन्याय के विरुद्ध युद्ध न करके बन जाना चाहते हैं। भगवान ने गीता में समझाया कि आपका कर्तव्य है अन्याय के विरुद्ध लड़ना।
अपने कर्तव्य का त्याग करने से व्यक्ति का लोक और परलोक दोनों बिगड़ जाता है। भगवान परशुराम महात्मा रूप में हैं।भगवान श्री राम ने अठारह दोहे में यह बताया की आपने किसी समय में फरसा उठा लिया था।आप संत हैं युद्ध आपका धर्म नहीं है। आप महात्मा हैं तप आपका धर्म है।
स्वधर्मे निधानं निधनं श्रेयः पर धर्मो भयावहा।
विवाह प्रसंग में दूल्हे के रूप में भगवान राम घोड़े पर विराजमान है। घोड़ा अत्यंत चंचल है। आध्यात्मिक दृष्टि से हमारा आपका मन भी बहुत चंचल है।साधक के जीवन में सबसे पहला कार्य है मन की डोर भगवान के हाथ में सौंप दें। महाराज जनक ने भगवान का चरण धोय। चरण धोने का आध्यात्मिक अर्थ है अभिमान शून्य होना। तब गुरुदेव वशिष्ठ ने श्री सीता जी का वस्त्र भगवान के वस्त्र से जोड़ दिया, अर्थात् गठबंधन कराया। अगर हम अपने मन को भगवान को सौंप दें, अभियान शून्य हो जाएँ, तो कोई सद्गुरु हमारा सम्बन्ध भगवान से जोड़ देगा यह श्रीसीतारामजी के विवाह का आध्यात्मिक भाव है।
कल की कथा में श्री राम वनवास, केवट प्रसंग और भरत चरित्र की कथा होगी। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना।