आयकर के बोझ में हालिया कमी, मुद्रास्फीति में नरमी, कम ब्याज दरें और कृषि उत्पादन के लिए अनुकूल परिदृश्य से भारत में ग्रामीण आय और समग्र उपभोग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. एक लेटेस्ट रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई. निजी अंतिम उपभोग व्यय भारत के सकल घरेलू उत्पाद का करीब 60% है, इसलिए इसका भारत के समग्र विकास परिदृश्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है. निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय में वृद्धि के लिए उपभोग में निरंतर सुधार भी महत्वपूर्ण है. केयरएज रेटिंग्स की रिपोर्ट में बताया गया है कि हमें वित्त वर्ष 2026 में निजी उपभोग में 6.2% की वृद्धि की उम्मीद है, जबकि पिछले तीन वर्षों में यह औसतन 6.7% रही है.
दीर्घावधि में, निजी उपभोग में स्वस्थ वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए घरेलू आय को प्रभावित करने वाले कारकों पर नजर रखना महत्वपूर्ण होगा. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में समग्र उपभोग वृद्धि स्वस्थ रही है, लेकिन हाल के संकेतक शहरी मांग में उभरते दबावों का संकेत देते हैं, जबकि ग्रामीण मांग स्थिर बनी हुई है. रिपोर्ट में बताया गया है कि वित्त वर्ष 26 में अनुकूल कृषि उत्पादन और मुद्रास्फीति में कमी से ग्रामीण उपभोग को समर्थन मिलने की उम्मीद है. RBI द्वारा ब्याज दरों में कटौती, करों के बोझ में कमी और मुद्रास्फीति के दबाव में कमी के रूप में हालिया नीतिगत समर्थन से निकट भविष्य में शहरी उपभोग को कुछ राहत और समर्थन मिलने की उम्मीद है.
इसके अलावा, रिपोर्ट में बताया गया है कि इस वर्ष अच्छे मानसून की संभावना से ग्रामीण उपभोग को बढ़ावा मिल सकता है. ऐसे समय में जब आय वृद्धि कमजोर रही है, हाउसहोल्ड लेवरेज में वृद्धि देखी गई है. FY24 तक, घरेलू ऋण सकल घरेलू उत्पाद का 41% और शुद्ध घरेलू प्रयोज्य आय का 55% था. हालांकि, भारतीय परिवार कुछ उभरती अर्थव्यवस्थाओं, जैसे थाईलैंड (GDP का 87%), मलेशिया (67%) और चीन (62%) की तुलना में कम ऋणग्रस्त हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू देनदारियों के असुरक्षित खंड पर कड़ी नजर रखना जरूरी है, जिसमें महामारी के बाद के वर्षों में वृद्धि हुई है.