Sleep Problem: आज के समय में दुनियाभर के डॉक्टर और वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि नींद की कमी धीरे-धीरे एक “साइलेंट हेल्थ क्राइसिस” बन चुकी है. पहले नींद को आराम या आदत माना जाता था, लेकिन अब शोध यह दिखाते हैं कि कम नींद का सीधा असर दिमाग, दिल, इम्यून सिस्टम और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है.
अमेरिका के एक रिपोर्ट में इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य की उभरती हुई समस्या बताया है. रिपोर्ट के अनुसार लगभग हर तीन में से एक वयस्क रोजाना पर्याप्त नींद नहीं ले पा रहा. वहीं, भारत में किए गए एक बड़े सर्वे में पाया गया कि युवा वर्ग में यह समस्या सबसे अधिक बढ़ी है और इसका सबसे बड़ा कारण है देर रात तक फोन का इस्तेमाल, ओवरवर्क, तनाव और अनियमित दिनचर्या.
कम नींद का याद्दाश्त पर भी पड़ता है प्रभाव
कई अध्ययनों में कम नींद का दिमाग पर असर देखा गया है. कैलिफोर्निया के एक स्टडी की मानें तो एक रात की खराब नींद भी याददाश्त, निर्णय लेने की क्षमता और सीखने की गति को 40 प्रतिशत तक कम कर सकती है. वैज्ञानिकों का तो ये भी कहना है कि कम नींद में मस्तिष्क के वह हिस्से सक्रिय हो जाते हैं जो चिंता और डर को बढ़ाते हैं, जिससे व्यक्ति छोटी बातों में भी तनाव महसूस करने लगता है. यही वजह है कि नींद की कमी वाले लोगों में एंग्जाइटी और डिप्रेशन की आशंका दुगनी पाई गई है.
दिल और शरीर पर भी असर
दिल और शरीर पर भी इसके गंभीर परिणाम सामने आए हैं. दरअसल, हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के रिसर्च के अनुसार, जो लोग 5 घंटे से कम सोते हैं, उनमें हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा 30–40 फीसदी बढ़ जाता है. नींद की कमी शरीर में सूजन बढ़ा देती है, जिससे ब्लड प्रेशर और शुगर लेवल गड़बड़ा सकते हैं. कई डॉक्टरों का मानना है कि नींद की कमी मोटापे को भी बढ़ाती है, क्योंकि देर से सोने पर भूख बढ़ाने वाला हार्मोन “घ्रेलिन” बढ़ जाता है और शरीर को गलती से कैलोरी की जरूरत महसूस होने लगती है. यही वजह है कि कम सोने वाले लोग रात में जंक फूड ज्यादा खाते हैं.
किशोर और युवा सबसे अधिक प्रभावित
किशोरों और युवाओं में तो नींद की कमी लगभग महामारी के रूप में दिख रही है. रिपोर्ट में बताया गया है कि किशोरों में सोशल मीडिया, रात देर तक सक्रिय रहना और स्क्रीन की नीली रोशनी नींद को 60–90 मिनट तक कम कर देती है. भारत में किए गए एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि 70 प्रतिशत से ज्यादा छात्र देर रात तक मोबाइल का उपयोग करते हैं, जिससे उनके नींद चक्र पर गंभीर असर पड़ता है. यह आदत आगे चलकर मानसिक थकान, चिड़चिड़ेपन, कम एकाग्रता और अकादमिक प्रदर्शन में गिरावट का कारण बनती है.
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