Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मन को पवित्र रखने के लिए जिसको आँखें बंद करने की आवश्यकता मालुम पड़ती है, जिसका मन आँखें बंद रखने पर ही पवित्र रहता है, उसका मन आँख खुलते...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भक्ति प्रदर्शन की वस्तु नहीं है, वह तो हृदय से परमात्मा को पाने की विधि है। भक्ति को प्रकट मत करो। उसे गुप्त रखो, नहीं तो वह इत्र की...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, कई वैष्णव अपने व्यापार - धंधे के स्थानों पर द्वारिकानाथ का चित्र लगाते हैं, किन्तु द्वारिकानाथ हमेशा उपस्थित हैं - ऐसा समझकर व्यवहार नहीं करते।ग्राहक के साथ छल करते...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, घर में रहकर ही परमात्मा को प्राप्त करो-श्रीमद्भागवतमहापुराण यह नहीं कहता है कि घर त्याग करोगे तभी भगवान प्राप्त होंगे। वह तो कहता है कि भगवान को प्राप्त करने...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, स्थावर, जंगम प्रत्येक पदार्थ में या चलते-फिरते प्रत्येक स्त्री-पुरुष में प्रभु के दर्शन करने की आदत डालो। यदि यह आदत पड़ गई तो जगत में आपका कोई शत्रु नहीं रहेगा...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, जो प्रत्येक प्राणी को भगवद भाव से देखने की आदत डालता है, उसका मन कभी नहीं बिगड़ता। ऐसे सत्पुरुषों का कोई बैरी भी नहीं होता। ज्ञानी पुरुष तो अचेतन...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भक्ति सर्वत्र सम्भव है। राह चलते, गाड़ी में प्रवास करते या दुकान में बैठकर व्यापार करते - सर्वकाल एवं सर्वत्र विराजने वाले परमात्मा की भक्ति तो चाहे जहां और...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीमद्भागवतमहापुराण वेदरूपी कल्पवृक्ष का पका हुआ फल है जिसमें गुठली, छिलका जैसा कुछ त्याज्य नहीं है, केवल रस ही रस है। अतः भक्तों को यह रस जीवन भर पीते...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ।। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी।। मनुष्य का जीवन भावना प्रधान है। आप अपने मन में जैसे विचार करेंगे वैसे ही आपका मन बनता जायेगा। आपके विचारों को कभी...
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ।।जीवनु मोर राम बिनु नाहीं।। कर्म बंधन नहीं कर्म फल की आसक्ति ही बंधन है और दुःख है। जैसे पुत्र पैदा हुआ, पुत्र मेरा है, मैंने पैदा किया है...