Bharat Express Exclusive: भारत एक्सप्रेस ने देश के विख्यात वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ. अजय सोनकर से खास बात की. ये खास बात भारत एक्सप्रेस के सीएमडी एवं एडिटर इन चीफ उपेंद्र राय की पत्नी और JIIT Professor डॉ. रचना ने की. उन्होंने कहा कि अगर हम मोतियों की बात करें, तो इसका नाम सुनते ही आंखों में चमक सी आ जाती है. इस चमक के साथ ही मन में आता है कि हमने कहीं ना कहीं प्रकृति को नुकसान पहुंचाया है. मानव ने जीवों के साथ ही समुद्री लाइफ को नुकसान पहुंचाया है.
चर्चा की शुरुआत में डॉ. रचना ने कहा कि “अगर हम डॉ. अजय सोनकर की बात करते हैं, तो वह ग्लानि खुशी में बदल जाती है. क्योंकि हम खुशी-खुशी पर्ल्स को वापस पहन सकते हैं. वहीं, पूजा-पाठ को लेकर उन्होंने कहा कि हर भारतीय के लिए पतित पावनी मां गंगा का अलग स्थान है. आपको याद होगा कि महाकुंभ में करीब 66 करोड़ भारतीयों ने त्रिवेणी स्नान किया. हम सभी लोग महाकुंभ के साक्षी रहे हैं, लेकिन संगम के जल को लेकर ऐसी भ्रांतियां फैलाई गईं कि त्रिवेणी का पानी दूषित है नहाने लायक नहीं है. तब डॉ. अजय सोनकर ने शोध करके वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किया कि पानी शुद्ध है. इससे नहाया जा सकता है.”
आइए आपको बताते हैं प्रयागराज से दुनिया को चौंकाने वाले वैज्ञानिक के बारे में. इनको मोती बनाने की प्रेरणा कहां से मिली?
डॉ. अजय सोनकर ने इंजीनियरिंग से शोध तक के सफर को लेकर कहा– मैं फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स का स्टूडेंट था. तो जनरली एक ट्रेंड होता है कि जो मैथमेटिक्स का स्टूडेंट है वो इंजीनियरिंग ट्रेड की तरफ जाता है. हमें इंजीनियरिंग के एंट्रेंस एग्जाम के लिए प्रिपेयर करना होता है. इंजीनियरिंग के लिए जब हम ट्रेवल कर रहे थे, तो रेलवे स्टेशन की बुक शॉप पर एक अमेरिकन मैगजीन नेशनल ज्योग्राफिक देखने को मिली. इसमें एक आर्टिकल था जापानीज पर्ल कल्चर के बारे में कि जापान में कैसे कल्चर हुआ. देखते-देखते मैंने उस किताब को खरीद लिया. वहीं से मुझे इसका फैसनेशन हुआ कि इस फील्ड, क्योंकि पूरी दुनिया में जापान का अधिकार एकाधिकार था. अमेरिका जैसी कंट्री रॉ मटेरियल लेकर के न्यूक्लियस प्रोड्यूस करता था. पर्ल बनाने के लिए अमेरिका को भी इसकी शर्तों को मानना पड़ता था. उनकी मोनोपोली को फॉलो करना पड़ता था. मुझे लगता था कि टेक्नोलॉजी के बल पे कोई कैसे इतना पूरी दुनिया को कंट्रोल कर सकता है. तब मुझे इसमें इंटरेस्ट हुआ. मुझे बहुत चैलेंजिंग फील्ड लगा.
उन्होंने बताया, “उस समय मैं इलाहाबाद में रहता था. वहां कोई समुद्र नहीं है. तब हमारे यहां एक फार्म हाउस हुआ करता था, तो उसमें एक तालाब था, जहां कभी-कभी हम पिकनिक मनाने फैमिली के साथ जाते थे. उस तालाब में मीठे पानी की सीपियां मौजूद थी. जब मैं उसे देखता था, तो रिलेट करता था. उसका इंटीरियर मोती की तरह चमकता था, तो मुझे लगता था कि अगर मेरे पास टेक्नोलॉजी होती तो इसके अंदर मोती बनती. मैं अपने आप को रोक नहीं पाता था. फिर लगता था कि कोई मुझे सिखा दे या बता दे कि कैसे होगा?”
